शारदीय नवरात्र में दस दिनों तक मां दुर्गा की अलग-अलग स्वरूप की आराधना के बाद दशमी तिथि (दशहरा) के दिन मां की विदाईकी परंपरा है. इस दौरान दुर्गा पूजा पंडालों में स्थापित माता दुर्गा की पूजा कर स्थापित मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. आमतौर पर विसर्जन के लिए सुसज्जित वाहन का प्रयोग किया जाता है. लेकिन कोडरमा के गुमो में स्थापित होने वालीमां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन का तरीका ही अनोखा है.
गुमो में करीब 600 वर्ष पूर्व राजा परिवार के द्वारा दुर्गा पूजा की शुरुआत की गई थी. कई दशकों तक राजा परिवार के द्वारा दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया. इसके बाद जब देश में राजतंत्र समाप्त हुआ. तब से स्थानीय लोगों के द्वारा परंपरा का निर्वहन करते हुए लगातार दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है.दशहरा (विजय दशमी) की रात दुर्गा मंडप में स्थापित माता दुर्गा के प्रतिमा के विसर्जन से पहले स्थानीय सुहागिन महिलाओं ने माता की मांग में सिंदूर लगाया. इसके बाद सुहागिन महिलाओं ने एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगाकर अखंड सौभाग्यवती होने की कामना की.
700 मीटर दूरी से ही लोग लगाते है जयकारे
इसके बाद माता दुर्गा की प्रतिमा को डोली के रूप में अपने कंधे पर लेकर विसर्जितकरने के लिए समिति के पदाधिकारी एवं स्थानीय लोगों के द्वारा ले जाया गया. इससे पहले प्रतिमा को लोगों ने अपने कंधे पर लेकर पांच बार दुर्गा मंडप का परिक्रमण किया. इस दौरान लोग माता की डोली को अपने कंधे पर लेना काफी सौभाग्यशाली मानते हैं. इसके बाद दुर्गा मंडप से करीब 700 मीटर की दूरी पर स्थित राजा जमाने की तालाब पर लोग माता दुर्गा की जयकारे लगाते हुए प्रतिमा लेकर पहुंचे. यहां लोगों ने सामूहिक रूप से आरती किया. इसके बाद माली ने दूध, दही और दूध घास से माता दुर्गा की प्रतिमा का चूमावन किया. इसके बाद विधि विधान से माता दुर्गा की प्रतिमा का लोगों ने नाम आंखों से विदाई देते हुए विसर्जन किया.