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बायो-बिटुमेन का प्रयोग कर उत्सर्जन से निपटने की तैयारी

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देश में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाने और बायो- बिटुमेन ( जैव डामर) से टिकाऊ सड़क बनाने की आस में अनुसंधान की जोर आजमाइश चल रही है। अनुसंधान की सफलता के बाद सड़क निर्माण में बायो-बिटुमेन के सार्थक परिणाम सामने आने लगेंगे। फिलहाल बायो-बिटुमेन परीक्षण के लिए दो अनुसंधान परियोजनाएं चल रही हैं। इनमें से एक शामली-मुजफ्फरनगर खंड पर एक परीक्षण खंड की स्थापना की गयी है।


सड़क एवं राजमार्गो के निर्माण में कचरे के उपयोग की सफलता के साथ-साथ बायो-बिटुमेन के उपयोग का भी परीक्षण किया जा रहा है, जिससे पेट्रोलियमयुक्त बिटुमेन की जगह सड़क निर्माण के लिए बायो-बिटुमेन का विकल्प मिल सके। बायो-बिटुमेन पूरी तरह से पेट्रोलियम मुक्त होता है और यह कुछ अनुपयोगी वनस्पति तेलों, फसल के ठूंठ, शैवाल, लिग्निन (लकड़ी का एक घटक), या पशु खाद जैसे नवीकरणीय स्रेतों से तैयार किया जाता है। इस वैकल्पिक बायो-बिटुमेन के परीक्षण एवं मूल्यांकन के लिए केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी), देहरादून के सहयोग से दो शोध परियोजनाओं पर काम करा रही है।

इनमें एक भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान, रु ड़की और दूसरा एक केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान काम कर रही है। सड़क निर्माण में बायो-बिटुमेन उपयोग का आकलन करने के लिए तीन वर्ष की समयावधि में प्रदशर्न निगरानी के लिए करीब दो वर्ष पूर्व राष्ट्रीय राजमार्ग-709एडी के शामली-मुजफ्फरनगर खंड पर एक परीक्षण खंड की स्थापना भी की गयी है। इसका परीक्षण परिणाम अगले वर्ष तक आ जाएगा। एनएचएआई ने एनएच-40 के जोराबट-शिलांग खंड पर बायो-बिटुमेन के साथ परीक्षण करने पर भी करने पर विचार कर रहा है।


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