भारतीय लोकतंत्र के लिए आज का दिन बेहद ही ऐतिहासिक है। आज पुराने संसद से नई संसद भवन में कार्यवाही को स्थानांतरित किया गया है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद में महिला आरक्षण को लेकर बड़ा ऐलान कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल में कई बार महिला आरक्षण बिल पेश किया गया। लेकिन उसे पास कराने के लिए आंकड़े नहीं जुटा पाए और यही कारण है कि वह सपना अधूरा रह गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि महिला को अधिकार देने का, उनकी शक्ति को आकार देने का काम करने के लिए भगवान ने मुझे चुना है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने महिला आरक्षण को नारी शक्ति वंदन अधिनियम का नाम दिया है। प्रधानमंत्री ने जब यह बातें कहीं तो संसद में तालिया के कर्कराहट साफ तौर पर सुनाई दे रही थी। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण की हमारी हर योजना ने महिला नेतृत्व करने की दिशा में बहुत सार्थक कदम उठाए हैं।
आपको बता दें कि संविधान संशोधन विधेयक में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि महिला आरक्षण विधेयक राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कानून निर्माण में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के इरादे से लाया गया है। इसमें कहा गया है कि महिला आरक्षण परिसीमन प्रक्रिया के बाद लागू होगा और 15 वर्षों तक जारी रहेगा। प्रत्येक परिसीमन प्रक्रिया के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की अदला बदली होगी। सरकार के मुताबिक भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य हासिल करने में महिलाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। महिलाएं अलग-अलग दृष्टिकोण लाती हैं और विधायी बहस तथा निर्णय लेने की गुणवत्ता को समृद्ध करती हैं। सरकार ने कहा कि महिलाएं पंचायतों, नगर निकायों में महत्वपूर्ण रूप से भाग लेती हैं; राज्य विधानसभाओं, संसद में उनका प्रतिनिधित्व अब भी सीमित है।
संसद के विशेष सत्र के पहले दिन की कार्यवाही के बाद सोमवार शाम को यहां केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई। महिला आरक्षण बिल पर पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि आरक्षण एक संवैधानिक संशोधन है। इसे लोकसभा और राज्यसभा से पारित होना होगा। फिर इसे देश की आधे से ज्यादा विधानसभा से पारित होना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति को इस पर हस्ताक्षर करना होगा। फिर यह एक अधिनियम बन जाएगा। जब तक यह एक अधिनियम नहीं बन जाता, तब तक चुनाव आयोग सभी राज्यों में वर्तमान कानूनों के तहत चुनाव कराने के लिए बाध्य है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अगर सारी योजना पहले ही बना ली गई हो और सभी दल एक निर्णय पर आ गए हों तो ऐसा हो सकता है। अगर राज्य विधानसभाएं इस विधेयक को पारित करने के लिए 2-3 दिनों का विशेष सत्र बुलाएं तो यह जल्दी हो सकता है। संभव है कि इसे दिसंबर तक लागू किया जा सके। चुनाव टालने का अधिकार किसी को नहीं है।