crossorigin="anonymous"> मोदी सरकार का फैसला संवैधानिक - Sanchar Times

मोदी सरकार का फैसला संवैधानिक

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  • जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर सुप्रीम मुहर, संविधान पीठ ने कहा


जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के चार साल पुराने फैसले को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र के निर्णय पर कोई फैसला नहीं दिया। संविधान पीठ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए। निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर में सितंबर 2024 तक चुनाव कराए जाएं।
सर्वसम्मति से दिए गए फैसले में चीफ जस्टिस धनंजय चंद्रचूड ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थाई प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास तत्कालीन राज्य की संविधान सभा की गैरमौजूदगी में इसे रद्द करने की शक्ति है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड ने मुख्य फैसला सुनाया। उन्होंने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की ओर से निर्णय दिया। इन दोनों न्यायाधीशों ने अलग से फैसला नहीं दिया बल्कि जस्टिस चंद्रचूड के फैसले से सहमति जताई। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले पर अलग-अलग, पर सर्वसम्मत फैसले दिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को अलग करने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखा। केंद्र सरकार ने इसी दिन अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों-जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित कर दिया था।
जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि हम स्पष्टीकरण एक के साथ अनुच्छेद तीन (ए) को पढ़े जाने के मद्देनजर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय की वैधता को बरकरार रखते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के पास संविधान सभा की सिफारिश के बिना भी अनुच्छेद 370(3) को रद्द करने की घोषणा करने वाली अधिसूचना जारी करने का अधिकार है। राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370(1) के तहत अपनी शक्ति का निरंतर इस्तेमाल इंगित करता है कि संवैधानिक एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया जारी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम निर्देश देते हैं कि भारत का निर्वाचन आयोग 30 सितंबर, 2024 तक पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत गठित जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए कदम उठाए। राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए।
राष्ट्रपति शासन को चुनौती नहीं दी गई : प्रधान न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि विलय पत्र के क्रियान्वयन और 25 नवंबर, 1949 की वह उद्घोषणा जारी होने के बाद, जिसके जरिए भारत के संविधान को अपनाया गया था, पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य की संप्रभुता का कोई तत्व बरकरार नहीं रहा। अनुच्छेद 370 विषम संघवाद की विशेषता थी, न कि संप्रभुता की। सीजेआई ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा सीओ 272 (जिसके द्वारा भारतीय संविधान को जम्मू-कश्मीर में लागू किया गया था) जारी करने के लिए अनुच्छेद 370(1)(डी) के तहत शक्ति का इस्तेमाल दुर्भावनापूर्ण नहीं था।
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 और जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 92 के तहत उद्घोषणा जारी करने को तब तक चुनौती नहीं दी, जब तक कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त नहीं किया गया। सीजेआई ने कहा कि उद्घोषणाओं को चुनौती पर फैसला सुनाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि चुनौती मुख्य रूप से उन कार्रवाइयों को लेकर दी गई है, जो उद्घोषणा जारी होने के बाद की गई थीं।


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