अब एक आसान और रैपिड रक्त जांच की मदद से बच्चों में तपेदिक (टीबी) का सटीक तरीके से पता लगाया जा सकेगा। भारत सहित पांच देशों में किए गए एक अध्ययन के निष्कषरें से इसका खुलासा हुआ है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, हर साल दुनियाभर में करीब 2,40,000 बच्चों की तपेदिक से मौत होती है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के 10 प्रमुख कारणों में यह बीमारी भी शामिल है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि तपेदिक से होने वाली मौतों के प्रमुख कारणों में अक्सर इस बीमारी का पता न लग पाना या फिर समय पर निदान नहीं हो पाना है, खासतौर पर उन क्षेत्रों में जहां संसाधन बहुत सीमित हैं। ‘द लांसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल’ में इस नयी जांच के बारे में बताया गया है, जो तपेदिक के निदान में महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्शा रही है। यह अध्ययन पांच देशों में व्यापक स्तर पर किया गया है। तपेदिक की जांच आमतौर पर निचले वायुमार्ग में बनने वाले बलगम के सूक्ष्मजीवविज्ञानी विश्लेषण के आधार पर की जाती है हालांकि, बच्चों से इस तरह के नमूने लेना काफी मुश्किल होता है। जर्मनी स्थित ‘लडविग मैक्सीमिलियन यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख’ की शोधकर्ता लॉरा ओल्ब्रिच ने कहा, ‘इसलिए नयी जांच की तत्काल जरूरत है।’ओल्ब्रिच ने बताया कि इस जांच की यह खूबी है कि रक्त का नमूना सिर्फ आपकी अंगुली से लिया जा सकता है और इसका परिणाम बहुत जल्दी आ जाता है। उन्होंने कहा, ‘हमें सिर्फ एक घंटे के भीतर परिणाम मिल जाता है। जबकि अन्य जांच में नमूनों को विश्लेषण के लिए दूसरी प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है।’ शोधकर्ताओं ने यह जांच ‘आरएपीएईडी-टीबी’ तपेदिक अध्ययन के हिस्से के रूप में की, जिसे एलएमयू यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल, म्यूनिख के शोधकर्ता नॉर्बर्ट हेनरिक के नेतृत्व में किया गया। इस अध्ययन को दक्षिण अफ्रीका, मोजाम्बिक, तंजानिया, मलावी और भारत में मौजूद सहयोगियों की मदद से किया गया।
अध्ययन में 15 साल से कम उम्र के कुल 975 बच्चे शामिल थे, जिन्हें तपेदिक होने का संदेह था। इस जांच की सटीकता का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने एक मानकीकृत संदर्भ जांच के माध्यम से बच्चों में टीबी है या नहीं इसका पता लगाने का प्रयास किया। यह जांच बलगम के विश्लेषण और जीवाणु की प्रवृति के आधार पर किया गया था। ओल्ब्रिच ने बताया, ‘90 प्रतिशत सटीकता के साथ जांच में करीब 60 प्रतिशत बच्चों के तपेदिक का शिकार होने की बात सामने आई। इसलिए इस जांच को अन्य सभी परीक्षणों की तुलना में बेहतर माना गया है।’