कार्यक्रम में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री सैयद कमर हसन रिज़वी मुख्य अतिथि रहे, जबकि डॉ राघवेंद्र जी आर, वरिष्ठ सलाहकार, डीपीआईआईटी, भारत सरकार विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए
प्रदीप कुमार सिंह
लखनऊ ब्यूरो (संचारटाइम्स.न्यूज) : डॉ० राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ में शनिवार को “डिजिटल युग में आईपी चुनौतियाँ: ए.आई. और उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित” विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का आयोजन डी.पी.आई.आई.टी चेयर द्वारा किया गया। कार्यक्रम में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री सैयद कमर हसन रिज़वी मुख्य अतिथि रहे, जबकि डॉ राघवेंद्र जी आर, वरिष्ठ सलाहकार, डी.पी.आई.आई.टी, भारत सरकार विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में श्री सौरभ तिवारी, अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
सम्मेलन में अन्य गणमान्य अतिथियों में चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय पटना के डी.पी.आई.आई.टी चेयर प्रोफेसर डॉ सुभाष चंद्र रॉय और राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय असम के प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार शामिल थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर (आई पी आर) रमन मित्तल भी इस महत्वपूर्ण आयोजन में उपस्थित रहे।
डी.पी.आई.आई.टी चेयर प्रो. डॉ. मनीष सिंह ने सम्मेलन की शुरुआत करते हुए सभी का स्वागत किया। उन्होंने ए.आई. के विकास के साथ इसके क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के उपायों पर विचार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि ए.आई. के आगमन से बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) से संबंधित नए प्रश्न उत्पन्न हो रहे हैं, और इन जटिलताओं का समाधान करने के लिए एक संगठित राष्ट्रीय ढांचे की आवश्यकता है।
मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति श्री सैयद कमर हसन रिज़वी ने ए.आई. और मानव के बीच की धुंधली रेखाओं पर चर्चा करते हुए बताया कि ए.आई. अब मानव-जैसे कार्य करने में सक्षम हो चुका है, जिससे कॉपीराइट और पेटेंट कानूनों में नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या ए.आई. को एक आविष्कारक माना जा सकता है, यह एक शोध का विषय बन सकता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ राघवेंद्र जी आर ने ए.आई. को एक उभरती तकनीक बताया और इस पर विचार व्यक्त किया कि यदि हम ए.आई. को आईपी अधिकार प्रदान करेंगे, तो यह मानव कुशलता को कमजोर कर सकता है। उन्होंने मेटावर्स और वेब 3.0 के बारे में भी चर्चा की और बताया कि ये तकनीकें किस प्रकार से आईपी कानूनों को प्रभावित कर सकती हैं।
मुख्य वक्ता श्री सौरभ तिवारी ने ए.आई. के इतिहास और इसके विकास की चर्चा करते हुए कहा कि यह तकनीक उद्योगों और बौद्धिक संपदा क्षेत्र पर प्रभाव डाल रही है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या पारंपरिक आईपी कानूनों को भारत में ए.आई. के संदर्भ में लागू किया जा सकता है, और इस दिशा में एक सक्षम कानूनी ढांचे की आवश्यकता है।
सम्मेलन में कुलपति प्रो. डॉ. अमरपाल सिंह ने सम्मेलन के विषय की सराहना की और कहा कि यह समय आ गया है जब हम नई, नवाचारी और मानव कुशलता को बढ़ावा देने वाले समाधान पर विचार करें। उन्होंने भारत के लिए यह एक अवसर बताया, विशेष रूप से जब नई तकनीकों का उदय हो रहा है।
सम्मेलन में तीन सत्रों में शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिसमें 100 से अधिक शोध पत्रों का आयोजन किया गया। सम्मेलन में भारत के अलावा पोलैंड जैसे देशों से भी शोध पत्र प्राप्त हुए। प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे आईआईटी, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, क्राइस्ट विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने विचार साझा किए।
कार्यक्रम के समापन समारोह में डॉ. इंद्रा द्विवेदी, पूर्व मुख्य वैज्ञानिक (सी.एस.आई.आर) ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने अनुभव साझा किए और बताया कि किस प्रकार बासमती, हल्दी, और नीम पर पेटेंट के मामलों में भारतीयों ने चुनौती दी। उन्होंने ए.आई. और अन्य नई तकनीकों के उभरने पर चर्चा करते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र में समाधान ढूंढने की आवश्यकता है। सम्मेलन के दौरान प्रो. सुभाष चंद्र रॉय और अन्य प्रमुख वक्ताओं ने भी ए.आई. और आईपी के बीच संतुलन बनाने, साहित्यिक चोरी और नवाचार से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार रखे।
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में प्रो. मनीष सिंह, डॉ. विकास भाटी, डॉ. अमन दीप सिंह, डॉ. मनीष बाजपाई, ऋषि शुक्ला, अरुणिमा सिंह, हिमांशी तिवारी समेत अन्य विशेषज्ञ भी उपस्थित रहे।