
रोहतास ब्यूरो संचार टाइम्स

रोहतास – 1974 के ऐतिहासिक जेपी आंदोलन में भाग लेने वाले भूमिगत सेनानियों की अनसुनी पीड़ा एक बार फिर सामने आई है। जहां इस आंदोलन में जेल गए लोगों को बिहार सरकार द्वारा ₹7500 प्रति माह सम्मान राशि दी जा रही है, वहीं भूमिगत रहकर आंदोलन को जीवित रखने वाले सेनानियों को अब तक किसी भी प्रकार का सरकारी सम्मान या सुविधा नहीं मिल सकी है। बिहार के सासाराम में ऐसे 16 भूमिगत सेनानी हैं, जो आज भी सरकार की ओर से किसी मान्यता या सहायता के इंतजार में हैं। इन्हीं में से एक, हरदेव सिंह ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से सरकार से अपील की है कि “हमारी उम्र अब ढल गई है, कोई सहारा नहीं है। सरकार को हमारी स्थिति को समझते हुए भूमिगत जेपी सेनानियों को भी सम्मान-राशि देनी चाहिए। आखिर हम भी उसी आंदोलन का हिस्सा थे।”
सरकार की स्थिति : बिहार विधानसभा में 17 मार्च 2025 को यह मुद्दा उठाया गया था। विधायक अजित कुमार सिंह के तारांकित प्रश्न के उत्तर में मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने स्पष्ट किया था। “भूमिगत होकर जेपी आंदोलन में शामिल हुए लोगों को सम्मान-राशि देने का कोई प्रावधान वर्तमान में नहीं है।” हालांकि इसके बावजूद भूमिगत सेनानी अपनी मांगों को लेकर आशान्वित हैं।
भूमिगत सेनानियों की मुख्य मांगें:
जेपी आंदोलन में भूमिगत योगदान देने वालों को भी जेपी सेनानी का दर्जा दिया जाए। उन्हें भी ₹7500 प्रति माह सम्मान-राशि मिले। स्वतंत्रता सेनानियों की तरह सरकारी सुविधाएं, जैसे पेंशन, मुफ्त इलाज, आवासीय मदद आदि मिले। 10 जुलाई 1974 को जेपी आंदोलन के दौरान हजारों युवाओं ने लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष किया। कई लोग जेल गए, उन्हें सरकार ने मान्यता दी। लेकिन जिन पर गिरफ्तारी वारंट जारी हुए और जो भूमिगत रहकर आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे, वे आज तक अनदेखे और उपेक्षित रहे हैं। सरकार की ओर से अब तक कोई नई घोषणा नहीं की गई है। सवाल यही है कि क्या सरकार ऐसे गुमनाम परन्तु साहसी सेनानियों को भी सम्मान दे पाएगी? समय ही बताएगा, लेकिन भूमिगत सेनानियों की मांगें लगातार जोर पकड़ रही हैं।
