crossorigin="anonymous"> भारत में बेरोजगारी बनती जा रही है एक गंभीर समस्या - Sanchar Times

भारत में बेरोजगारी बनती जा रही है एक गंभीर समस्या

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भारत में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। इसमें छिपी हुई बेरोजगारी की स्थिति तो और भी ज्यादा चिंताजनक है। दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल पर अपनी बातचीत के दौरान कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने देखा था कि बड़ी संख्या में शिक्षित युवा, जिनमें इंजीनियरिंग डिग्री वाले भी शामिल हैं, औपचारिक रोजगार पाने में असमर्थ हैं। वे मजबूरी में कुली जैसा अनिश्चित और अनौपचारिक रोजगार कर रहे हैं। संसद सदस्य और कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने अपने एक बयान में कहा है कि अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में 25 साल से कम उम्र के 42 फीसदी ग्रेजुएट बेरोजगार थे। जनवरी 2023 में, 8,000 उम्मीदवारों ने गुजरात विश्वविद्यालय में क्लर्क के 92 पदों के लिए आवेदन किया। इनमें एमएससी और एमटेक वाले भी शामिल थे। जून 2023 में महाराष्ट्र में क्लर्क के 4,600 पदों के लिए 10.5 लाख लोगों ने आवेदन किया। इनमें एमबीए, इंजीनियर और पीएचडी होल्डर्स भी शामिल थे।

जयराम रमेश के अनुसार, औपचारिक क्षेत्र में पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने में मोदी सरकार की घोर विफलता के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के 2021-22 के आंकड़ों से पता चलता है कि औपचारिक क्षेत्र में रोजगार, 2019-20 की तुलना में 5.3 फीसदी कम हैं। इसके अलावा 2019-20 से 2021-22 तक औपचारिक क्षेत्र में रोजगार देने वालों की संख्या में भी 10.5 फीसदी की भारी गिरावट आई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 और मार्च 2023 के बीच मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की नौकरियों में 31 फीसदी की गिरावट आई है। जनवरी-मार्च 2023 के नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में भी 50 फीसदी से कम श्रमिक वेतनभोगी हैं। नवीनतम अखिल भारतीय पीएलएफएस डाटा, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल है, बहुत चिंताजनक है। इसके मुताबिक 2021-22 में केवल 21 फीसदी श्रमिकों के पास ही औपचारिक नौकरियां थी, जो अभी भी 23 फीसदी की महामारी-पूर्व अवधि से कम है। इसके बजाय, स्व-रोजगार और अनौपचारिक रोजगार में वृद्धि हुई है।

जयराम रमेश के मुताबिक, ये आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार की विनाशकारी आर्थिक नीतियों और बिना किसी प्लानिंग के किए गए लॉकडाउन ने वास्तव में शिक्षित युवाओं के लिए औपचारिक रोजगार के अवसरों को कम कर दिया है। आर्थिक संकट के कारण निजी क्षेत्र में नौकरियां कम हो रही हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को बहुत कम संख्या में मौजूद सरकारी पदों के लिए प्रतिस्पर्धा करने को मजबूर होना पड़ रहा है। मोदी सरकार में सार्वजनिक क्षेत्र के सिकुड़ने के कारण यह स्थिति और भी बदतर होती जा रही है। अगस्त 2022 तक केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 9.8 लाख पद खाली थे। सीएमआईई के डाटा से पता चलता है कि 2015-16 और 2022-23 के बीच सरकारी नौकरियों में 20 फीसदी की कमी आई है। भारत में अब प्रति 1000 जनसंख्या पर सार्वजनिक कर्मचारियों की संख्या सबसे कम है। यह संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील और यहां तक कि चीन से भी कम है।

कांग्रेस पार्टी के महासचिव ने कहा, मोदी सरकार रोजगार संकट से निपटने के बजाय आंकड़ों को छिपाने, तोड़-मरोड़ कर पेश करने और तरह-तरह की नौटंकी करने में व्यस्त है। ईपीएफओ डाटा से सामने आ रहे स्थिर वार्षिक अनुमानों पर भरोसा करने के बजाय, वे गैर भरोसेमंद मासिक डाटा का प्रचार-प्रसार करने में लगे हैं। वे जानबूझकर इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं कि मासिक डाटा को कई बार 50 फीसदी से भी अधिक तक संशोधित किया जाता है। इसमें बड़ी खामियां होती हैं। सरकारी नौकरी देने में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से रोजगार मेलों का आयोजन कर रहे हैं। इन मेलों ने नियमित सरकारी कामकाज का पूरी तरह से मजाक बना दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र में लगभग 10 लाख रिक्तियों के बावजूद, मोदी सरकार पहले से ही स्वीकृत पदों के लिए 50,000 जॉब लेटर को इस तरह पेश करती है जैसे कोई बड़ा काम कर दिया हो। यह हास्यास्पद है कि वे इसी आधार पर दावा करते हैं कि रोजगार पैदा कर रहे हैं। एक आरटीआई डाटा से पता चलता है कि रोजगार मेलों में सभी जॉब लेटर्स को ‘नई भर्तियों’ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन इनमें एक बड़ी संख्या वास्तव में सिर्फ पदोन्नति है।

सबसे निराशाजनक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की अप्रैल 2023 की रिपोर्ट का एक आंकड़ा है। भारत के कुल 33 फीसदी युवाओं के पास न तो नौकरी है, न ही वे शैक्षिक या प्रशिक्षण पाठ्यक्रम ले रहे हैं। महिलाओं के मामले में यह संख्या 50 फीसदी से अधिक है। मोदी सरकार ने भारत के युवाओं के सपनों और आकांक्षाओं को इस हद तक कुचल दिया है कि उनके पास नौकरी तो नहीं ही है, उन्होंने भविष्य में भी इसकी उम्मीद छोड़ दी है। वे इस हद तक हताश हैं कि शिक्षा या प्रशिक्षण में निवेश करना ही नहीं चाहते। इसका दुखद परिणाम यह है कि युवा आत्महत्या दर (30 वर्ष से कम आयु) 2016 के बाद से तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2021 में यह 4.9 प्रति लाख जनसंख्या तक पहुंच गई है, जो 25 वर्षों में सबसे अधिक है। जयराम रमेश ने कहा, जनसांख्यिकीय लाभांश के जनसांख्यिकीय आपदा में बदलने के संकट से निपटने के बजाय यदि मोदी सरकार युवाओं में आत्महत्या दर को छिपाने के लिए 2022 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में हेरफेर करने का अगला कदम उठाए तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।


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