जाति आधारित गणना की आर्थिक सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद राज्य सरकार ने छह हजार तक आय वाले 94 लाख से अधिक परिवारों को स्वरोजगार के लिए दो लाख रुपये देने की घोषणा की है। वहीं, राज्य सरकार 67 हजार से अधिक भूमिहीन परिवारों को जमीन के लिए प्रति परिवार 60 हजार के बदले एक लाख रुपये देगी। सीएम नीतीश कुमार ने गरीबी उन्मूलन के कई और उपायों की घोषणा की।
सीएम नीतीश ने कहा कि जीविका दीदियां अब शहरों में भी काम करेंगी। शहरी क्षेत्रों में इनकी संख्या डेढ़ लाख होगी। सतत जीविकापार्जन योजना के तहत दी जाने वाली राशि एक से बढ़ा कर दो लाख कर दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि न्याय के साथ विकास उनका संकल्प है। बिना किसी भेदभाव के वे उस पर चल रहे हैं।
आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव
जाति आधारित गणना के आधार पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा बढ़ा कर 75 प्रतिशत करने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने यह प्रस्ताव विधानसभा में विचार के रूप में रखा।
कहा कि गणना की रिपोर्ट से राज्य की गरीबी जाहिर होती है। केंद्र सरकार अगर बिहार को विशेष दर्जा दे तो गरीबी जल्द दूर होगी। उन्होंने बताया कि सवर्ण गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण यथावत रहेगा।
पिछड़े वर्ग को मिलने वाला तीन प्रतिशत आरक्षण पिछड़ों के लिए पहले से जारी आरक्षण में समायोजित कर दिया जाएगा, क्योंकि राज्य सरकार पहले से ही महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दे रही है। मुख्यमंत्री के प्रस्ताव को यदि लागू किया जाता है तो पिछड़ों-अति पिछड़ों को 27 के बदले 43 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। अनुसूचित जातियों-जनजातियों को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण मिलता है। 2011 की जनगणना की तुलना में इनकी आबादी बढ़ी है। इसलिए अनुसूचित जाति को 16 के बदले 20 और जनजातियों को एक के बदले दो प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।
उन्होंने कहा कि उनके प्रस्ताव पर अगर अमल होता है तो सरकारी सेवाओं की कुल 25 प्रतिशत रिक्तियां खुली प्रतिस्पर्धा से भरी जाएगी। उन्होंने कहा कि जाति गणना रिपोर्ट से यह भी जानकारी मिली है कि कुछ पंचायतों में शिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है। सरकार ऐसे पंचायतों में शिक्षा के लिए विशेष अभियान चलाएगी।
मुख्यमंत्री ने भाजपा सदस्यों से आग्रह किया कि वे केंद्र सरकार से बात कर अगली राष्ट्रीय जनगणना में जातियों की गणना भी शामिल करा दें। नीतीश ने सदन को बताया कि किस तरह उन्हें जातियों की गणना की प्रेरणा पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से मिली थी। वे पहली बार 1989 में सांसद बन कर दिल्ली गए थे।
ज्ञानी जैल सिंह ने कहा था कि देश के विकास के लिए जातियों की गणना जरूरी है। उन्होंने तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह से भी आग्रह किया था, लेकिन तबतक 1991 की जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो गई थी।
नीतीश ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि इस गणना में विधानमंडल में मौजूद सभी नौ दलों ने सहयोग किया। विधानमंडल से दो बार केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मिला।
केंद्र ने कहा कि हम नहीं कर सकते हैं। राज्य चाहे तो अपने साधनों से जाति आधारित गणना करा ले। तब सरकार ने यह निर्णय लिया। उन्होंने जाति आधारित गणना के दौरान आई न्यायिक अड़चनों की चर्चा के दौरान पटना हाई कोर्ट और सुप्रीम कोटे के सकारात्मक रूख को सराहा।
मुख्यमंत्री ने मुख्य विपक्षी दल भाजपा नेताओं के आग्रह पर कहा कि राज्य सरकार जातियों की संख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाली रिपाेर्ट को पंचायत स्तर पर भी जारी करने पर विचार कर सकती है। हालांकि राष्ट्रीय जनगणना में पंचायतवार आंकड़ा जारी करने का कोई प्राविधान नहीं है।