हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) की उपस्थिति और नियंतण्रजमीनी स्तर पर नहीं दिख रहा है। वैधानिक निकाय होने के नाते उसे अधिक प्रभावी और सक्रिय होने की जरूरत है। कोर्ट ने यह कहते हुए डीएमसी से शहर के सभी डाक्टरों कि चिकित्सीय योग्यता एवं प्रमाण पत्रों की जांच करने को कहा है जिससे पता चले कि नेमप्लेट पर एमडी लिखने वाले डाक्टर के पास एमबीबीएस की डिग्री है या कोई डिग्री ही नहीं है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मिकी पुष्करणा की पीठ ने इस मामले में डीएमसी के अलावा दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार एवं राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है और सुनवाई 24 जनवरी के लिए स्थगित कर दी है। पीठ ने यह जवाब-तलब एक छह वर्षीय बच्चे एवं दो बुजुगरे की याचिका पर सुनवाई करते हुए किया है। पीठ ने कहा कि डीएमसी को थोड़ा और प्रभावी होना होगा। पीठ ने डीएमसी के वकील से कहा आपको थोड़ा और कुशल होने की जरूरत है। आपकी उपस्थिति जमीनी स्तर पर महसूस नहीं हो रही है। लोगों और समाज को कुछ भरोसा होना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि भ्रष्ट आचरण के खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी डीएमसी की है। उसे केवल की गई शिकायतों के आधार पर प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। डीएमसी को स्वयं कार्रवाई करनी चाहिए। आपका खुद पर नियंतण्रहोना चाहिए।
पीठ ने कहा कि आपको शिकायत के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं है। बड़े पैमाने पर जनता को पता होना चाहिए कि जो व्यक्ति कह रहा है कि वह एमडी है, उसके पास वास्तव में वह डिग्री है या नहीं। आपको यह भी देखना होगा कि डाक्टर की डिग्री वास्तव में उसकी प्रैक्टिस से मेल खाती है भी कि नहीं। ऐसा नहीं कि उनके पास एमबीबीएस की डिग्री हो लेकिन कुछ और इलाज कर रहा है। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया गया है कि डीएमसी अपने नियामक कर्तव्यों को निभाने में विफल रही है जिसके परिणामस्वरूप उन्हें चोटें आई है।