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समान सबूत तो एक को दोषी दूसरे को बरी नहीं कर सकते

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने हत्या के साथ डकैती सहित कथित अपराधों के लिए 10 साल जेल की सजा पाये चार व्यक्तियों को बरी करते हुए कहा है कि जब एक जैसी भूमिका बताने वाले एक समान सबूत हों तो अदालतें एक आरोपी को दोषी ठहरा कर, दूसरे को बरी नहीं कर सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामले में जिसमें साक्ष्य एक समान हैं, दोनों आरोपियों के मामले ‘समानता के सिद्धांत’ द्वारा शासित होंगे, जिसका अर्थ है कि अदालतें दोनों के बीच अंतर नहीं कर सकती क्योंकि यह भेदभावपूर्ण होगा। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने शीर्ष अदालत के 11 मई, 2018 के आदेश का उल्लेख करते हुए आरोपियों में से एक आरोपी को बरी कर दिया, जिसने इससे पहले उच्चतम न्यायालय में गुजरात उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती दी थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने मामले में सात आरोपियों की दोषसिद्धि की पुष्टि की थी लेकिन सजा आजीवन कारावास से घटाकर 10 साल कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, निष्कर्ष का का लाभ समान रूस से दिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने अगस्त 2018 में तीन आरोपियों को बरी कर दिया था, जबकि एक अन्य आरोपी की याचिका मई 2018 में खारिज कर दी गई थी। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ जावेद शौकत अली कुरेशी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने बुधवार को दिए गए अपने फैसले में कहा, जब दो आरोपियों के खिलाफ एक समान या एक जैसी भूमिका बताने वाले चश्मदीद गवाहों के एक समान सबूत हों, तो अदालत एक आरोपी को दोषी ठहरा कर दूसरे को बरी नहीं कर सकती। ऐसे मामले में, दोनों आरोपियों के मामले समानता के सिद्धांत द्वारा शासित होंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा, इस सिद्धांत का मतलब है कि आपराधिक अदालत को एक जैसे मामलों का फैसला एक तरह से करना चाहिए और ऐसे मामलों में, अदालत दो आरोपियों के बीच अंतर नहीं कर सकती है, यह भेदभावपूर्ण होगा। कुरेशी के मामले में पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के दो गवाह, जिनके चश्मदीद गवाह होने का दावा किया गया था, वे पुलिस कांस्टेबल थे और उन्होंने दावा किया था कि नवंबर 2003 में घटना के समय अहमदाबाद में लगभग 1,000 से 1,500 लोगों की भीड़ घटनास्थल पर इकट्ठा हुई थी।


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