
ST.News Desk

ढाका: बांग्लादेश में दिसंबर महीने के दौरान चार हिंदू नागरिकों की बेरहमी से हुई हत्या ने देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अलग-अलग स्थानों पर हुई इन घटनाओं में हत्या के तरीके भले अलग रहे हों, लेकिन एक बात समान रही—मृतकों की धार्मिक पहचान। मारे गए लोगों में अमृत मंडल, दीपू दास, जोगेश चंद्र रॉय और सुबर्णा रॉय शामिल हैं।
कहीं गला रेतकर हत्या की गई, कहीं भीड़ ने पीट-पीटकर जान ले ली, तो कहीं सरेआम शव को लटकाकर भय का संदेश दिया गया। इन घटनाओं ने न सिर्फ हिंदू समुदाय, बल्कि पूरे देश में दहशत का माहौल पैदा कर दिया है।
जोगेश चंद्र रॉय और पत्नी की गला रेतकर हत्या
जानकारी के अनुसार, 7 दिसंबर को जोगेश चंद्र रॉय और उनकी पत्नी सुबर्णा रॉय की निर्मम हत्या कर दी गई। दोनों के शव बांग्लादेश के रंगपुर स्थित उनके घर के भीतर से बरामद हुए। दोनों का गला कटा हुआ था।
75 वर्षीय जोगेश चंद्र रॉय एक मुक्तिजोधा (स्वतंत्रता सेनानी) थे, जबकि उनकी पत्नी सुबर्णा रॉय की उम्र 60 वर्ष थी। इस दोहरे हत्याकांड ने इलाके में भय और आक्रोश फैला दिया।
ईशनिंदा के आरोप में दीपू दास की भीड़ द्वारा हत्या
18 दिसंबर को मयमनसिंह (Mymensingh) में दीपू दास की हत्या सबसे भयावह रूप में सामने आई। उन पर ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए उन्मादी भीड़ उन्हें एक फैक्ट्री से जबरन पकड़कर ले गई और बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला।
इसके बाद उनका शव सड़क पर सरेआम गले में फंदा डालकर लटका दिया गया। यहीं नहीं, दंगाइयों ने शव को जूते-चप्पलों से पीटा और अंत में आग के हवाले कर दिया।
अमृत मंडल की मौत, ताजा मामला
चौथा और ताजा मामला अमृत मंडल की हत्या का है। शुरुआती जानकारी के अनुसार, 24 दिसंबर की देर रात बांग्लादेश के राजबाड़ी (Rajbari) में उन पर अचानक हमला किया गया। भीड़ ने उन्हें बुरी तरह पीटा, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए।
अमृत मंडल को अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इलाज के दौरान 25 दिसंबर को तड़के करीब 2 बजे उनकी मौत हो गई।
इन घटनाओं ने यह सवाल और भी गहरा कर दिया है कि क्या बांग्लादेश में हिंदू होना अब सुरक्षित नहीं रहा। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि इन हत्याओं के पीछे कौन लोग थे, बल्कि यह भी है कि इसकी जिम्मेदारी किसकी है—उन्मादी भीड़ की, कानून-व्यवस्था तंत्र की या फिर मुहम्मद यूनुस सरकार की?

