
ST.News Desk : महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर उपजा विवाद अब सियासी रंग पकड़ता जा रहा है। हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर हिंदी भाषी लोगों के साथ हो रही मारपीट और दुर्व्यवहार की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें कथित तौर पर मराठी न बोलने पर लोगों से जोर-जबरदस्ती की गई है। इन घटनाओं ने न सिर्फ आम जनता को झकझोरा है बल्कि राज्य की राजनीति को भी गर्मा दिया है।

इन सबके बीच भाजपा विधायक और मंत्री नितेश राणे का विवादित बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने ठाकरे ब्रदर्स को खुली चुनौती देते हुए कहा कि यदि मराठी भाषा को लेकर वाकई गंभीर हैं, तो “मदरसे में मराठी में अज़ान शुरू करवाएं।” राणे ने कहा, “कांग्रेस मुंबई में मराठी पाठशालाएँ शुरू कर रही है, लेकिन ज़रूरत है कि मदरसों में उर्दू की जगह मराठी पढ़ाई जाए। वरना वहां से बंदूक ही निकलती है।” राणे यहीं नहीं रुके। उन्होंने मंदिरों के बाहर बैठे मुस्लिम व्यापारियों को लेकर भी टिप्पणी की:
“मंदिरों के बाहर ‘जय श्री राम’ के नारे लगते हैं, लेकिन दुकानों में अब्दुल बैठा है।”
विपक्ष का तीखा पलटवार
राणे के इन बयानों पर तीखी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। एआईएमआईएम नेता वारिस पठान ने आरोप लगाया कि भाजपा नेता धर्म और भाषा के नाम पर नफरत फैला रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से नितेश राणे के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
कांग्रेस नेता अमीन पटेल ने भी पलटवार करते हुए कहा, “मदरसे पहले से ही अंग्रेजी, हिंदी और कई जगह मराठी भी पढ़ाते हैं। अज़ान एक धार्मिक प्रक्रिया है, जो अरबी में होती है, न कि भाषाई माध्यम में।” कई सामाजिक संगठनों और भाषा विशेषज्ञों ने भी मराठी के नाम पर हिंसा और जबरदस्ती को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि भाषा प्रेम ज़रूरी है, लेकिन ज़बरदस्ती से नहीं।
मराठी बनाम हिंदी की बहस अब भाषा से ज्यादा राजनीति का अखाड़ा बनती जा रही है। नितेश राणे का बयान इस बहस को एक नए और विवादास्पद मोड़ पर ले गया है, जिसे लेकर आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति और गरमाने की पूरी संभावना है। क्या यह बहस मराठी भाषा को बढ़ावा देने के प्रयासों को मजबूत करेगी या समाज में विभाजन को और गहरा करेगी यह देखना बाकी है।
