
नई दिल्ली (ST.News Desk : 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में विशेष एनआईए अदालत द्वारा साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी किए जाने के बाद मामला नया मोड़ लेता दिख रहा है। अदालत ने कहा कि मात्र संदेह के आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, और अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।

निर्णय के कुछ दिनों बाद, एक पूर्व भाजपा सांसद ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और अन्य प्रमुख नेताओं के नाम लेने के लिए दबाव और यातना दी गई थी। उन्होंने दावा किया,
“मैंने लिखित में सभी बातें दे दी थीं। वे कहते थे—इन लोगों के नाम ले लो, तो हम तुम्हें नहीं मारेंगे। उनका उद्देश्य मुझे प्रताड़ित करना था।” इस घटनाक्रम के बीच साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला और आरोप लगाया कि यह पूरा मामला भगवा विचारधारा और सशस्त्र बलों को बदनाम करने की सोची-समझी साजिश थी।
उन्होंने कहा,
“यह धर्म की जीत है। कांग्रेस ने झूठा केस बनाकर राष्ट्रवाद को बदनाम किया। कांग्रेस कभी भी राष्ट्रवादी पार्टी नहीं बन सकती, क्योंकि यह आतंकियों को पालने वाली पार्टी है।” प्रज्ञा ठाकुर ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें कठोर जेल यातनाओं और अस्वस्थ माहौल में उचित इलाज नहीं दिया गया, जिससे आज उनकी शारीरिक स्थिति बेहद कमजोर हो चुकी है।
गौरतलब है कि मालेगांव में 2008 में हुए बम धमाके में 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हो गए थे। इस मामले को लेकर आतंकवाद विरोधी कानून (UAPA) के तहत मुकदमा चलाया गया था। विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष सबूतों के अभाव में आरोपियों को दोषी सिद्ध करने में असमर्थ रहा। अदालत ने इस आधार पर सभी आरोपियों को सम्मानपूर्वक बरी कर दिया।
