
हैदर अली
रोहतास ब्यूरो संचार टाइम्स

रोहतास नगर पंचायत कार्यालय परिसर में शनिवार को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) में अपने पूरे परिवार के साथ शहीद हुए वीर योद्धा सरनाम सिंह की 167वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता शाहाबाद महोत्सव के अध्यक्ष अखिलेश सिंह और युवा समाजसेवी तोराब नियाजी ने की। इस अवसर पर वक्ताओं ने वीर सरनाम सिंह के बलिदान को याद करते हुए उनके देशभक्ति और साहसिक योगदान को रेखांकित किया। वक्ताओं ने कहा कि भारतीय इतिहास ने आज़ादी की लड़ाई में सरनाम सिंह को वह स्थान नहीं दिया जिसके वे वास्तविक हकदार थे।
सरनाम सिंह, रोहतास प्रखंड के नावाडीह गांव के निवासी थे। उन्होंने वीर कुंवर सिंह और उनके सहोदर भाई अमर सिंह के प्रमुख सहयोगी के रूप में 1857 के विद्रोह में हिस्सा लिया था। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 19 जुलाई 1858 को तेलकप मोड़ पर तोप से उड़ा कर मौत की सजा दी थी। उनके साथ उनके पुत्र रामशरण सिंह, भतीजे जयनाथ सिंह, और पोते देवी सिंह को भी गिरफ्तार कर 10 वर्षों की सजा सुनाई गई थी।
सरनाम सिंह पर अंग्रेजों ने एक हजार रुपये का इनाम घोषित किया था। कहा जाता है कि तेलकप इंडिगो फैक्ट्री पर हमला करने और सरकारी बर्कंदाज की हत्या में उनकी भूमिका के कारण वे ब्रिटिश सरकार के निशाने पर आ गए थे।
गुप्त सूचना पर उन्हें कैमूर के जंगलों से जुलाई 1858 में गिरफ्तार किया गया और आरा में विलियम बेग की अदालत द्वारा संक्षिप्त सुनवाई के बाद मृत्यु दंड दिया गया। तुराब नियाजी ने इस अवसर पर कहा, “हमारे पूर्वजों ने जिस साहस और आत्मबलिदान का परिचय दिया, वह आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। ऐसे वीरों के इतिहास को पाठ्यक्रम और सरकारी स्मृति में उचित स्थान मिलना चाहिए।”
वीर सरनाम सिंह का बलिदान आज भी इतिहास के उस पन्ने पर अंकित है, जिसे बार-बार पढ़ने और सम्मान देने की आवश्यकता है। रोहतास की धरती ने जिस शूरवीर को जन्म दिया, उसकी शौर्यगाथा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना समय की मांग है।
