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सासाराम सदर अस्पताल में नवजात की मौत पर हंगामा: सांसद मनोज कुमार ने डॉक्टर पर लगाए बदतमीजी के आरोप, चिकित्सक ने किया खंडन

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हैदर अली
रोहतास ब्यूरो संचार टाइम्स

बिहार के सासाराम सदर अस्पताल स्थित एसएनसीयू (SNCU) में भर्ती एक नवजात शिशु की मौत के बाद अस्पताल में हंगामे और आरोप-प्रत्यारोप का माहौल बन गया। मृतक शिशु के परिजनों ने इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया, वहीं मौके पर पहुंचे सासाराम के कांग्रेस सांसद मनोज कुमार ने भी चिकित्सकों पर बदतमीजी और ड्यूटी से गायब रहने का गंभीर आरोप लगाया।

पीड़ित पक्ष का आरोप
पीड़ित राहुल कुमार राम, निवासी दावथ थाना क्षेत्र, ने बताया कि उसकी पत्नी मधु कुमारी ने हाल ही में एक बच्चे को जन्म दिया था। नवजात के नहीं रोने की शिकायत पर चिकित्सकीय सलाह के बाद उसे सदर अस्पताल के SNCU में भर्ती कराया गया था।
परिजनों का आरोप है कि “डॉक्टर ड्यूटी पर मौजूद नहीं थे, और समय पर इलाज नहीं मिला। इसी कारण बच्चे की जान चली गई।” घटना के बाद परिजनों ने हंगामा किया और सांसद को फोन कर बुलाया।

सांसद मनोज कुमार का बयान
मौके पर पहुंचे सांसद मनोज कुमार ने भी डॉक्टर पर बदसलूकी का आरोप लगाया और कहा, “मैं जब अस्पताल पहुंचा, तो न केवल परिजनों से बल्कि मुझसे भी डॉक्टर ने बदतमीजी की। डॉक्टरों की ड्यूटी में लापरवाही की वजह से नवजात की मौत हुई है। सरकार को चेतावनी देता हूं – सुशासन के नाम पर गरीबों के साथ अन्याय न करें।”

सांसद ने यह भी कहा, “स्वास्थ्य मंत्री सिर्फ कागज पर बेहतर स्वास्थ्य सेवा का ढोल पीटते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।” डॉक्टर का पक्ष, वहीं SNCU के चिकित्सक डॉ. मोहम्मद इम्तियाज ने सांसद के आरोपों का पूरी तरह खंडन किया है। उनका कहना है:

“SNCU में 24 घंटे डॉक्टर ड्यूटी पर रहते हैं। नवजात को नाजुक हालत में भर्ती किया गया था, और यह जानकारी उस समय परिजनों को भी दे दी गई थी। दुर्भाग्य से बच्चे की मौत हो गई। इस दौरान सांसद जूता पहनकर 10 लोगों के साथ अंदर आ गए, जब उन्हें जूता बाहर निकालने और कुछ लोगों को बाहर रहने का अनुरोध किया गया, तो सांसद नाराज़ हो गए। किसी तरह की बदतमीजी नहीं की गई।” स्थिति तनावपूर्ण, लेकिन नियंत्रण में घटना के बाद अस्पताल परिसर में तनाव की स्थिति रही, हालांकि पुलिस और प्रशासन के हस्तक्षेप से हालात नियंत्रण में आ गए।

नवजात की मौत ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर परिजन और जनप्रतिनिधि चिकित्सकीय लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं, तो वहीं डॉक्टर आरोपों को सिरे से नकार रहे हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस मामले की जांच कर सच्चाई तक कब और कैसे पहुंचते हैं, ताकि भविष्य में ऐसे विवादों और घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।


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