crossorigin="anonymous"> पाक में नए नेतृत्व के सामने होंगी कड़ी चुनौतियां - Sanchar Times

पाक में नए नेतृत्व के सामने होंगी कड़ी चुनौतियां

Spread the love

इस्लामाबाद। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की शतरे को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा हाल में लिए गए नीतिगत फैसलों के कारण पाकिस्तान में मुद्रास्फीति और गरीबी भयंकर रूप से बढ़ गई है। जब महंगाई की मार और गरीबी से त्रस्त मतदाता एक महीने से अधिक समय तक चले चुनाव अभियानों और सार्वजनिक सभाओं के दौरान चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के वादों और बड़े-बड़े दावों को सुनने के बाद 8 फरवरी को मतदान करेंगे, तो जीतने वाली पार्टी से उम्मीदें बहुत अधिक होंगी, जिसके आने वाले दिनों में घोर निराशा में बदलने की आशंका भी उतनी ही अधिक होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि राजनेताओं के बेहतर दिनों के बड़े-बड़े दावे नई सरकार के सामने पहले दिन से ही खड़ी आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों के सामने धराशायी हो सकते हैं।
यह निश्चित रूप से किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन के माध्यम से बनी सरकार के लिए सौभाग्य की बात नहीं होगी क्योंकि पिछले दशकों के असफल शासन और प्रबंधन के कारण पाकिस्तान का आर्थिक परिदृश्य राजनीतिक अक्षमता, दुस्साहस और गलत कदमों से आहत हुआ है। यह कहना गलत नहीं होगा कि देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया होगी, वह भी तब जब अगली सरकार कठिन निर्णय लेने और उस लक्ष्य के लिए काम करने का फैसला करती है और तब भी जब मतदाता अच्छे दिनों के लिए और ज्यादा सहने के लिए तैयार हों।
पाकिस्तान में महंगाई की मौजूदा दर 30 फीसद के आसपास है, जबकि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या हर गुजरते दिन के साथ लगातार बढ़ रही है। अनुमान के अनुसार, देश की कुल आबादी (24.2 करोड़) के लगभग 38.2 प्रतिशत के गरीबी रेखा से नीचे होने का अनुमान है, और बिजली, गैस, ईंधन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती दरों के साथ यह प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। यह एक स्थापित तथ्य है कि संरचनात्मक कमजोरियों को अतीत में सरकारों ने सबसे अधिक नजरअंदाज किया है, जिसने देश को आभासी वित्तीय मंदी की स्थिति में धकेल दिया है।


Spread the love