crossorigin="anonymous"> 'पापा बस एक बार आ जाओ, फिर मिशन पे चले जाना…' फादर्स डे पर मासूम ने शहीद पिता को भेजा वॉयस मैसेज - Sanchar Times

‘पापा बस एक बार आ जाओ, फिर मिशन पे चले जाना…’ फादर्स डे पर मासूम ने शहीद पिता को भेजा वॉयस मैसेज

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देश की सुरक्षा में तैनात जवान का परिवार भी उतना ही साहसी होता है, जितना की बॉर्डर पर जंग लड़ रहा सेना का जवान होता है। हर एक कुर्बानी के लिए देश के जवान के साथ उनके परिवार को भी सम्मान देना चाहिए। क्योंकि देश के लिए अपने परिवार खोने की हिम्मत सबके पास नहीं होती।
आज का दिन हम सबके लिए बेहद खास है। आज हमारे सुपर हीरो, हमारे पिता का दिन है। दुनिया भर में आज आज फादर्स डे मनाया जा रहा है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने पापा के इंतजार में बैठे हैं। हमारे देश के उन जवानों के बच्चे जिनके पिता भारत की सुरक्षा में चौबीस घंटे तैनात हैं या फिर शायद सुरक्षा करते-करते अपने जान की कुर्बानी दे दी। ऐसी ही एक बच्चे की कहानी हम आपको बताएगे जिनके पिता देश की सुरक्षा में कुर्बान हो गए और वो अभी भी अपने पापा से वापस आने की जिद्द कर रहा है।

कर्नल मनप्रीत सिंह ने पिछले साल देश की सुरक्षा में अपनी जान गबा दी। लेकिन उनके सात साल के बेटे कबीर को अभी भी अपने पापा का इंतजार है। कर्नल मनप्रीत सिंह ने कुछ दिनों पहले अपने पिता कर्नल सिंह के नंबर पर हाल में एक वॉयस मैसेज भेजा है। जिसे सुनकर आपके भी आंखो से पानी आ जाएंगे। कबीर को मैसेज में “पापा बस एक बार आ जाओ, फिर मिशन पे चले जाना” कहते सुना जा सकता है। वह मासूम इस कठोर सच्चाई से अनजान है कि उसके पिता अब कभी वापस नहीं आएंगे।

अपने पिता के नंबर पर ऐसे कई संदेश वह अपनी मम्मी की नजरों से बचने के लिए फुसफुसाकर भी भेजता है। वह कई बार वीडियो कॉल करने की भी कोशिश करता है। कर्नल सिंह का वीरता भरा अंतिम अभियान पिछले वर्ष 13 सितंबर को था। जब उन्होंने अन्य सैनिकों के साथ गडूल गांव के आसपास के जंगलों में आतंकवादियों के साथ भीषण मुठभेड़ की थी। अपने साहस के बावजूद, कर्नल सिंह, मेजर आशीष धोंचक, जम्मू-कश्मीर पुलिस के उपाधीक्षक हुमायूं भट एवं सिपाही प्रदीप सिंह ने सर्वोच्च बलिदान दिया। इस बलिदान ने उन लोगों के दिलों में हमेशा के लिए एक खालीपन पैदा कर दिया, जो उन्हें (वीर सपूतों को) जानते और सराहते थे।

कर्नल सिंह की अनुपस्थिति उनके परिवार के सदस्यों, विशेषकर उनकी पत्नी जगमीत पर भारी पड़ रही है। जगमीत को वह समय अच्छे से याद है जब उन्होंने (कर्नल सिंह ने) चिनार के दो पेड़ लगाए थे और प्यार से उनका नाम अपने बच्चों- कबीर और वाणी- के नाम पर रखा था। जगमीत ने कहा, “उन्होंने कहा था कि हम इन पेड़ों को देखने के लिए 10 साल बाद फिर आएंगे, लेकिन अब…” सिंह का समुदाय के प्रति समर्पण उनके सैन्य कर्तव्यों से कहीं आगे तक फैला हुआ था। पुनर्वास प्रयासों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, खासतौर पर नशे की लत से जूझ रहे लोगों का जीवन पटरी पर लाने में। महिलाओं को सशक्त बनाने और खेल तथा शिक्षा के माध्यम से सामुदायिक भावना को बढ़ावा देने में कर्नल सिंह के योगदान को उनके जानने वाले बड़े प्यार से याद करते हैं।


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