
इंडोनेशिया के शोधकर्ताओं ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध की निगरानी के एक किफायती तरीके का परीक्षण किया है जो विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकता है। इंडोनेशिया के शोधकर्ताओं ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध में परिवर्तन को मापने के लिए एक किफायती, प्रभावी, अपेक्षाकृत त्वरित विधि पण्राली का परीक्षण किया है जो विकासशील देशों को वैिक खतरे के रूप में देखी जाने वाली समस्या से लड़ने में मदद कर सकता है।
इस पण्राली में छोटे नमूना आकारों का उपयोग करके जनसंख्या के रोगाणुरोधी प्रतिरोध का आकलन किया जा सकता है। पिछले महीने स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में इस खतरे से व्यापक रूप से निपटने की प्रतिबद्धता के बाद जी20 के लिए यह अच्छी खबर है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध रोगाणुओं में उन दवाओं के प्रभाव को रोकने की क्षमता है जो उन्हें मारने के लिए होती हैं। इससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है और लंबे समय तक अस्पताल में रहना, अधिक महंगी देखभाल और मृत्यु का खतरा बढ सकता है। इंडोनेशिया में रोगाणुरोधी प्रतिरोध का उच्च स्तर अब एक ‘मूक महामारी’ बनता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि ‘सुपरबग’ के बढ़ने से 2050 तक वैिक स्तर पर प्रति वर्ष एक करोड़ लोगों की मौत हो सकती है और वि अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। कई अन्य देशों की तरह, रोगाणुरोधी दवाओं का अनुचित उपयोग और प्रतिरोध को उत्प्रेरित करने वाले खराब स्वच्छता और वायु प्रदूषण जैसे अन्य कारक इंडोनेशिया में प्रचलित हैं। 2015 में 68वीं वि स्वास्थ्य सभा ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर वैिक कार्य योजना को अपनाया। यह बढ़ी हुई वैिक निगरानी के महत्व पर जोर देता है, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, जहां यह एक प्रमुख चिंता का विषय है।

