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**20 साल बाद भी बिहार की सत्ता का पर्याय: नीतीश कुमार

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2005 से 2025 तक—कैसे हर चुनाव में बने किंग या किंगमेकर**

ST.News Desk

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर साफ कर दिया कि राज्य की राजनीति में नीतीश कुमार का प्रभाव पिछले दो दशकों की तरह अब भी अडिग है।
एनडीए की संभावित जीत के साथ ही यह लगभग निश्चित हो गया है कि नीतीश कुमार एक बार फिर सत्ता में लौटेंगे—और इस तरह बिहार में 2005 से शुरू हुई उनकी सत्ता-यात्रा अगले पांच साल और बढ़ सकती है।

लेकिन सवाल यह है- आखिर 2005 से 2025 के बीच ऐसा क्या हुआ कि किस्म-किस्म के चुनावी उतार-चढ़ाव के बावजूद नीतीश हर बार या तो “किंग” बने या “किंगमेकर”? साथ ही कम सीटें मिलने पर भी वह सत्ता से कैसे चिपके रहे?
आइए यह पूरा घटनाक्रम समझते हैं।

2005: 7 महीने में दो चुनाव—और बिहार की राजनीति बदल गई

1990 से 2000 तक बिहार में लालू यादव का दबदबा रहा। “समोसे में जब तक आलू रहेगा, तब तक बिहार में लालू रहेगा”—यह जुमला राजनीति की हकीकत माना जाता था।

फरवरी 2005: कोई बहुमत नहीं, समीकरण उलझे

243 सीटों वाली विधानसभा में पहला चुनाव हुआ:

राजद: 215 सीटों पर लड़े → 75 सीटें

जदयू: 138 सीटों पर → 55 सीटें

भाजपा: 103 सीटों पर → 37 सीटें

एनडीए कुल: 92 सीटें (बहुमत से दूर)

लोजपा (रामविलास पासवान): 29 सीटें (चौंकाने वाला प्रदर्शन)

कांग्रेस: 10 सीटें

लोजपा किंगमेकर बन गई, लेकिन रामविलास पासवान ने शर्त रखी कि मुख्यमंत्री मुस्लिम होना चाहिए।
कोई दल शर्त मानने को तैयार नहीं हुआ, और सरकार नहीं बन सकी।

राष्ट्रपति शासन और दूसरा चुनाव

अक्टूबर–नवंबर 2005 में फिर से चुनाव हुए।

इस बार बिहार पूरी तरह बदल गया:

जदयू: 88 सीटें

भाजपा: 55 सीटें

एनडीए कुल: 143 सीटें → स्पष्ट बहुमत

राजद: 54 सीटें

लोजपा: 10 सीटें (पिछली बार 29)

और यहीं से शुरू हुआ—नीतीश कुमार का 20 साल लंबा शासन।

2005–2010: सामाजिक इंजीनियरिंग और नीतीश का उभार

नीतीश कुमार ने सत्ता संभालते ही एक नई राजनीति शुरू की—
“अति पिछड़ों, महिलाओं और पसमांदा मुसलमानों” को लक्षित योजनाएँ:

पसमांदा मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण पंचायत/निकाय चुनावों में महिलाओं को 50% आरक्षण युवा लड़कियों को साइकिल योजना अति पिछड़ों के लिए कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला

इसका नतीजा यह हुआ कि नीतीश ने एक नया स्थायी समर्थक वर्ग तैयार कर लिया।

2010: नीतीश का सबसे बड़ा जनादेश 2010 विधानसभा चुनाव में एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की:

एनडीए कुल: 206 सीटें (243 में से)

जदयू: 115

भाजपा: 91

राजद: 22

कांग्रेस: 4

लोजपा: 3

एनडीए का वोट शेयर करीब 40% तक पहुंच गया-और नीतीश कुमार के नेतृत्व को “बिहार मॉडल” के रूप में देखा जाने लगा।

2010–2025: बदलते गठबंधन, बदलते समीकरण—लेकिन नीतीश स्थिर

भले ही इस दौरान राजनीतिक गठबंधन बदले— 2013 में भाजपा से अलग होना 2015 में महागठबंधन में जाना 2017 में फिर भाजपा के साथ आना 2020 में दोबारा महागठबंधन और 2024–25 में फिर एनडीए में वापसी लेकिन सरकार का केंद्र हर बार नीतीश ही रहे।

यही कारण है—कम सीटें होने पर भी नीतीश “किंगमेकर” या “किंग” बने रहे।

कई बार 40–45 सीटें होते हुए भी या तो उन्होंने सरकार बनाई या सरकार गिराई या सत्ता का केंद्र बने रहे यह क्षमता किसी अन्य नेता में नहीं दिखाई दी।

2025: 20 साल बाद भी नीतीश की सत्ता बरकरार

2025 के चुनावों में रुझान एक बार फिर कहते हैं, नीतीश की शिकयतीं के बावजूद उम्र और स्वास्थ्य पर उठे सवालों के बावजूद विपक्ष की आक्रामक रणनीति के बावजूद वोटरों ने उन्हें “विश्वसनीय विकल्प” माना।

क्यों 20 साल बाद भी नीतीश सत्ता का पर्याय हैं? स्थायी सामाजिक आधार – महिलाएँ, अति पिछड़े, पसमांदा प्रशासनिक छवि – सुशासन मॉडल की पहचान गठबंधन राजनीति की महारत – कम सीटों पर भी सत्ता का केंद्र विपक्ष की अस्थिरता और अंतर्द्वंद्व मोदी–नीतीश की संयुक्त अपील (विशेषकर 2025 में)


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