
पटना विधानसभा के मानसून सत्र के चौथे दिन
ST.News Desk : पटना विधानसभा के मानसून सत्र के चौथे दिन एक अनोखा दृश्य देखने को मिला जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष के कपड़ों के रंग पर आपा खो बैठे। विपक्ष के सभी विधायक काले कपड़ों में नजर आए, जिसे देख कर सीएम नीतीश कुमार ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “रोज-रोज काला कपड़ा पहनकर आ जाते हो। पहले कभी पहने थे क्या काला कपड़ा?”

सीएम ने आरोप लगाया कि विपक्ष एक तरह के कपड़े पहनकर जानबूझकर हंगामा करता है और यह अब एक आदत बन चुकी है। उन्होंने कहा कि पहले यह इक्का-दुक्का बार होता था, लेकिन अब हर पार्टी मिलकर ऐसा कर रही है। नीतीश कुमार का कहना था कि सरकार ने काफी विकास कार्य किए हैं, जिससे विपक्ष को भी लाभ मिला, लेकिन वे सिर्फ विरोध की राजनीति कर रहे हैं। विधान परिषद में विपक्ष आरक्षण का प्रतिशत 65% तक बढ़ाने की मांग को लेकर नारेबाजी कर रहा था — “आरक्षण चोर, गद्दी छोड़।” कुछ देर सुनने के बाद नीतीश कुमार खुद खड़े हो गए और उन्होंने विपक्ष के रंग-बिरंगे विरोध को लेकर तंज कसा।
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “ये कहीं होंगी। इनको क्या पता! ये तो बेचारी हैं। इनके पति की पार्टी है न, वही कहे होंगे।” इस पर राबड़ी देवी ने भी पलटवार करते हुए कहा, “जो गमछा डालकर आते हैं, उनको कुछ नहीं कहेंगे क्या?” राजनीतिक पंडितों की मानें तो रंगों का राजनीति में गहरा अर्थ होता है — भगवा जहां भाजपा और हिंदूवादी दलों का प्रतीक बन चुका है, वहीं हरा रंग आरजेडी जैसे दलों से जुड़ा है। अब काले कपड़े सत्ता विरोध का नया प्रतीक बनते जा रहे हैं। यही वजह है कि सीएम नीतीश कुमार को इन रंगों में विपक्ष की एकता और रणनीति दिखने लगी है, जो उन्हें असहज कर रही है।
राजनीति में रंगों का खेल नया नहीं है, लेकिन अब यह बहस का कारण भी बन गया है। सवाल यह है कि क्या रंगों के विरोध से असल मुद्दे दबते जा रहे हैं, या फिर यह सत्ता को असहज करने की एक सोची-समझी रणनीति है?
