ST.News Desk : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा की मौजूदगी में सोरेन ने भाजपा में एंट्री ली। शिवराज सिंह चौहान ने सोरेन को भाजपा की “संपत्ति” बताया है। हालांकि, चुनावी मौसम में नेताओं का आना-जाना सामान्य बात है, लेकिन सोरेन की भाजपा में एंट्री से पार्टी को संभावित लाभ और नुकसान दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
भाजपा को संभावित लाभ और नुकसान
चंपई सोरेन का भाजपा में शामिल होना आदिवासी क्षेत्र में पार्टी की पकड़ मजबूत करने में मददगार हो सकता है, लेकिन इससे पार्टी के भीतर गुटबाजी की आशंका भी उत्पन्न हो सकती है। हाल के वर्षों में झारखंड में भाजपा की स्थिति कमजोर हुई है, और 2024 के आम चुनावों में पार्टी ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सभी पांच लोकसभा सीटें हार गई थीं। 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने निराशाजनक प्रदर्शन किया था, जिसमें पार्टी ने 28 आरक्षित सीटों में से केवल दो पर जीत हासिल की थी।
चंपई सोरेन का प्रभाव और संभावित रणनीतिक लाभ
चंपई सोरेन के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक ने 2024 के लोकसभा चुनावों में झारखंड में पांच सीटें हासिल कीं, जो 2019 की तुलना में तीन अधिक हैं। विधानसभा की 81 सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, और आदिवासी इलाकों में सोरेन का प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकता है। भाजपा के लिए चंपई सोरेन की एंट्री एक रणनीतिक लाभ प्रदान कर सकती है, खासकर आदिवासी-भारी इलाकों में।
भाजपा के भीतर संभावित गुटबाजी
चंपई सोरेन का भाजपा में शामिल होना पार्टी के भीतर गुटबाजी की आशंका को जन्म दे सकता है। झारखंड भाजपा अब चार पूर्व मुख्यमंत्रियों—चंपई सोरेन, बाबूलाल मरांडी, मधु कोड़ा, और अर्जुन मुंडा—के साथ बढ़ रही है, जिससे शीर्ष पद के लिए उम्मीदवारों की संख्या बढ़ गई है। कई सत्ता केंद्र एक पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं, और इससे भाजपा को विधानसभा चुनाव में मुश्किलें आ सकती हैं।
आदिवासियों पर भाजपा के आरोप और अन्य मुद्दे
चंपई सोरेन का भाजपा में शामिल होना झामुमो पर आदिवासियों का अपमान करने के भाजपा के आरोपों के साथ मेल खाता है। इससे पहले, झामुमो के संरक्षक शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन का भाजपा में शामिल होना भी एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा गया था। चंपई सोरेन ने बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर भी आवाज उठाई है, जो भाजपा के एजेंडे में भी शामिल रहा है।
चंपई सोरेन की भाजपा में एंट्री एक दोधारी तलवार प्रतीत होती है। यह झारखंड की आदिवासी आबादी के बीच भाजपा की अपील को मजबूत कर सकती है और पार्टी की चुनावी संभावनाओं को बढ़ा सकती है, लेकिन साथ ही पार्टी के भीतर गुटबाजी और सत्ता संघर्ष की समस्याओं को भी जन्म दे सकती है। आगामी चुनावों में भाजपा के नेतृत्व को इस चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।