भारतीय रेलवे के पास राजस्व अर्जित करने के लिए सिर्फ माल ढुलाई और यात्री टिकट की बिक्री ही आय ही स्रेत नहीं होते हैं बल्कि रेलवे ने अपने अन्य प्रमुख स्रेतों भी राजस्व जुटाती है। इसके अलावा भी रेलवे के पास कमाई के दूसरे प्रमुख स्रेत होते हैं। इनमें स्क्रैप की बिक्री से जुटाई जाने वाली रकम का योगदान सबसे अधिक है। रेलवे ने बीते दस वर्षो में कबाड़ बेचकर 41,000 करोड़ रु पये से ज्यादा राजस्व अर्जित किया है।
रेलवे ने देशभर के अपने नेटवर्क पर परिचालन के दौरान प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में रेल कोच, माल गाड़ी के वैगन, पटरियां आदि संचालन के मानकों के मुताबिक अनुपयोगी हो जाते हैं। इन बेकार चीजों को रेलवे द्वारा बेचा जाता है। इससे प्रति वर्ष करोड़ों रु पयों की आय होती है। बताया जाता है कि वर्ष 2014 के पहले जब कबाड़ को बेचा जाता था, तो रेलवे को बहुत ज्यादा कमाई नहीं होती थी। लेकिन 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में रेलवे स्क्रैप की बिक्री में पारदर्शिता बढ़ी है। इसी का नतीजा है कि रेलवे ने कबाड़ से बिक्री से होने वाली कमाई में रिकॉर्ड उपलब्धि हासिल की है।
रेलवे के सूत्रों के अनुसार, पिछले दस वर्षो को दौरान यानी 2014 से 2024 के बीच रेलवे ने स्क्रैप की बिक्री से 41,856 करोड़ रु पये से अधिक का राजस्व अर्जित किया है। इसमें वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान स्क्रैप की बिक्री से 5,773 रु पये का रिकॉर्ड राजस्व अर्जित किया गया है। बताया गया है कि इस दौरान रेलवे द्वारा देश भर में 9,46,000 मीट्रिक टन कबाड़ बेचा गया है। इस कबाड़ में 6,313 वैगन, 2,746 यात्री कोच और 498 लोको भी शामिल हैं। इन चीजों के अलावा स्टाफ क्वाटरों, केबिनों, शैडो, वाटर टैंकों से निकला कबाड़ भी रेलवे द्वारा बेचा जाता है, जिससे पुराने ढांचों के दुरु पयोग की संभावना भी समाप्त होती है। रेलवे संस्थानों और परिसरों से कबाड़ हटने से नई वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए पर्याप्त जगह भी मिलती है।