ST.News Desk : साल की शुरुआत में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तारी के बाद विवादों में घिरे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए एक आश्चर्यजनक नतीजा पेश किया है। एग्जिट पोल्स को नकारते हुए, झामुमो तीसरी बार सरकार बनाने की ओर अग्रसर है, जबकि गठबंधन 50 सीटों पर आगे चल रहा है, जो 42 सीटों के बहुमत से कहीं ऊपर है। वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए 30 सीटों पर आगे है।
झामुमो-कांग्रेस गठबंधन झारखंड के प्रमुख क्षेत्रों जैसे छोटा नागपुर, कोल्हान, कोयलांचल, पलामू और संथाल परगना में आगे चल रहा है। 2019 में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 47 सीटें जीती थीं, जिसमें झामुमो ने 30 सीटें जीतीं। वहीं, भाजपा ने 81 में से केवल 25 सीटें जीती थीं।
सहानुभूति की लहर
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने की कोशिश की, लेकिन सोरेन ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को वोटरों तक पहुंचाने के लिए आगे किया। उनका यह कदम सफल साबित हुआ और भाजपा की रणनीति उलट गई।
बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा
भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा जोर-शोर से उठाया, लेकिन यह मुद्दा भाजपा के लिए उल्टा साबित हुआ। सत्तारूढ़ गठबंधन ने यह दावा किया कि भाजपा सांप्रदायिक एजेंडा पेश करने की कोशिश कर रही है, जिससे मतदाताओं में असंतोष उत्पन्न हुआ।
प्रभावशाली चेहरे का अभाव
भाजपा ने चुनाव में कोई स्पष्ट मुख्यमंत्री चेहरे की पेशकश नहीं की, जबकि झामुमो ने साफ तौर पर हेमंत सोरेन को अपना सीएम उम्मीदवार घोषित किया। इसका प्रभाव मतदाताओं पर पड़ा, जिन्होंने नेतृत्व के संदर्भ में झामुमो को प्राथमिकता दी।
केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता
सत्तारूढ़ दल के नेताओं पर छापेमारी और गिरफ्तारी की कार्रवाई को भाजपा ने भ्रष्टाचार के मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन यह कदम वोटरों में नकारात्मक संदेश पहुंचाने में सफल नहीं रहा।
दल-बदल का खेल
भाजपा ने कई विपक्षी नेताओं को अपने खेमे में शामिल किया, लेकिन यह रणनीति चुनावी लाभ में बदलने में नाकाम रही। उदाहरण के तौर पर, जामताड़ा सीट से दलबदलू सीता सोरेन चुनाव हार रही हैं, जो भाजपा की दलबदल की नीति की असफलता का प्रतीक है।
इन प्रमुख फैक्टरों ने झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणामों को प्रभावित किया और यह साफ कर दिया कि चुनावी रणनीतियाँ हमेशा आशा के मुताबिक काम नहीं करतीं।