crossorigin="anonymous"> एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं से बढ़ रहा है सडेन कार्डियक अरेस्ट का खतरा, WHO रिपोर्ट और स्टडी से हुआ खुलासा - Sanchar Times

एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं से बढ़ रहा है सडेन कार्डियक अरेस्ट का खतरा, WHO रिपोर्ट और स्टडी से हुआ खुलासा

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ST.News Desk : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर करीब 3.1% लोग एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं का सेवन कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार, यह संख्या 25 करोड़ से अधिक लोगों की है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए इन दवाओं का उपयोग आम होता जा रहा है, लेकिन हालिया स्टडीज ने इनके गंभीर दुष्प्रभावों को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।

स्टडी का दावा: कार्डियक अरेस्ट से जुड़ा है एंटी-डिप्रेसेंट का कनेक्शन
एक हालिया मेडिकल स्टडी में यह सामने आया है कि सडेन कार्डियक अरेस्ट (SCA) से होने वाली मौतों का प्रत्यक्ष संबंध एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं से है। खासकर वे लोग जो हृदय रोग (Cardiovascular Disease) से पीड़ित हैं, उन्हें डिप्रेशन और फिर कार्डियक अरेस्ट का खतरा दोगुना बढ़ जाता है।

क्या होता है सडेन कार्डियक अरेस्ट?
सडेन कार्डियक अरेस्ट का मतलब है — दिल का अचानक रुक जाना। यह घटना अक्सर बिना किसी चेतावनी के होती है और इसमें व्यक्ति कुछ ही सेकंड में बेहोश होकर गिर जाता है। अगर समय पर CPR या मेडिकल सहायता न मिले तो यह मौत का कारण बन सकती है।

एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं से शरीर को क्या नुकसान हो सकता है?
हालांकि ये दवाएं मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी हो सकती हैं, लेकिन इनके दुष्प्रभाव भी व्यापक हैं:

रक्तचाप में अचानक बदलाव

दिल की धड़कनों में अनियमितता

मांसपेशियों में कमजोरी या ऐंठन

चक्कर आना, सिरदर्द और बेहोशी

नींद में गड़बड़ी

थकान और सुस्ती

वजन में परिवर्तन

सेक्स ड्राइव में कमी

अधिक पसीना आना

कैसे बढ़ता है कार्डियक रिस्क?
दिल एक म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट की तरह तय लय और रफ्तार से धड़कता है। कुछ एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं इस लय को बिगाड़ देती हैं, जिससे हार्ट रिदम डिस्टर्बेंस (Arrhythmia) की स्थिति बन जाती है। यह ब्लड पंपिंग प्रक्रिया को बाधित करती है और कुछ ही सेकंड में जानलेवा स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

जोखिम किसे ज्यादा?
स्टडी के अनुसार:

1-5 साल तक एंटी-डिप्रेसेंट लेने वाले लोगों में सडेन कार्डियक डेथ का खतरा 3 गुना तक बढ़ जाता है।

6 साल या उससे अधिक समय तक इन दवाओं का सेवन करने वालों में यह खतरा 5 गुना तक हो सकता है।

30-39 वर्ष की उम्र के लोग सबसे ज्यादा जोखिम में माने जा रहे हैं।


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