यदि सभी नहीं तो अधिकतर बहु-कोशिकीय जीवों (मल्टी सेल्युलर ऑर्गनिज्म) में सूक्ष्मजीव (माइक्रोब) एक अभिन्न अंग हैं। वास्तव में, ये जीव अपने अंदर और ऊपर मौजूद छोटे-छोटे रोगाणुओं के कारण ऐसा हैं। ये रोगाणु माइक्रोबायोम का निर्माण करते हैं। मानव शरीर में सूक्ष्मजीवों का वजन लगभग 2.5 से तीन किलोग्राम, जबकि बड़े जानवरों में इससे भी अधिक होता है। पहले इन माइक्रोबायोम को ‘अदृश्य अंग’ कहा जाता था, लेकिन आधुनिक आणविक इमेजिंग प्रौद्योगिकियों के आगमन के साथ शरीर का यह अनोखा हिस्सा दिखाई देने लगा।
अपनी पुस्तक ‘माइक्रोबायोम्स एंड देयर फंक्शंस’ में, मैंने पता लगाया है कि माइक्रोबायोम अन्य दिखाई देने वाले अंगों के साथ मिलकर कैसे काम करता है और शरीर के विकास व अस्तित्व के लिए आवश्यक विभिन्न शारीरिक कायरें से जुड़ा होता है।‘माइक्रोबायोम’ शुरू से ही सभी जीवों के शरीर का हिस्सा रहे हैं, और दिखाई देने वाले उनके अंगों के साथ मिलकर विकसित हुए हैं। पाचन तंत्र, इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि कैसे माइक्रोबायोम अंगों को आकार दे सकते हैं। मांसाहारी, सर्वाहारी या शाकाहारी में पाचन तंत्र की विशेषताएं स्पष्ट रूप से भिन्न होती हैं। शाकाहारी जीवों का पाचन तंत्र सबसे लंबा होता है और मांसाहारियों का सबसे छोटा।
माइक्रोबायोम- माइक्रोबायोम का बड़ा हिस्सा पाचन तंत्र में पाया जाता है, जहां यह हमारे आहार से पोषक तत्व निकालने में मदद करता है। माइक्रोबायोम का निर्माण करने वाले विविध रोगाणु न केवल अच्छे पाचन में योगदान करते हैं, बल्कि हमारी प्रतिरक्षा पण्राली को बेहतर बनाने में भी मदद करते हैं, और हार्मोन व न्यूरोट्रांसमीटर का उत्पादन करते हैं, जो हमारे व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालते हैं। माइक्रोबायोम द्वारा उत्पन्न अणु शरीर के गैर-मौखिक संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये माइक्रोबायोम भूख, प्यास, मिजाज में बदलाव और सामाजिक व्यवहार समेत कई प्रकार की प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कर सकते हैं। आंत में मौजूद माइक्रोबायोम और मस्तिष्क के बीच सूचना नेटवर्क को वेगस तंत्रिका से सहायता मिलती है, जो इन दोनों अंगों को जोड़ती है।
आंत में मौजूद ‘लैक्टोबैसिलस’ और ‘बिफीडोबैक्टीरियम’ जैसे माइक्रोबायोम मानव व्यवहार को प्रभावित करने के लिए जाने जाने वाले ‘न्यूरोट्रांसमीटर’ जैसे कि जीएबीए (गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड), ‘एसिटाइलकोलाइन’, ‘नॉरएपिनेफ्रिन’, ‘ऑक्सीटोसिन’ और ‘इंडोल मेटाबोलाइट्स’ का स्रव करते हैं। ‘इंडोल डेरिवेटिव’ तब प्राप्त होते हैं, जब आंत के रोगाणु आवश्यक अमीनो-अम्ल ‘ट्रिप्टोफैन’ का उपापचय (मेटाबॉलाइज) करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन’ को ‘फील गुड’ हार्मोन माना जाता है और यह अक्सर सकारात्मक भावनाओं से जुड़ा होता है।