crossorigin="anonymous"> बाइपोलर डिसऑर्डर साधारण रक्त जांच से अधिक सटीकता से पता लगाया जा सकता है - Sanchar Times

बाइपोलर डिसऑर्डर साधारण रक्त जांच से अधिक सटीकता से पता लगाया जा सकता है

Spread the love

नई दिल्ली। अनुसंधानकर्ताओं ने एक साधारण रक्त जांच विकसित की है, जिसके नतीजों को ऑनलाइन मनोवैज्ञानिक आकलन के साथ मिलाकर कहीं अधिक सटीकता से ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’का पता लगाया जा सकता है। ब्रिटेन स्थित कैम्ब्रिज विविद्यालय की टीम ने पाया कि सिर्फ रक्त जांच से 30 प्रतिशत तक ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ से पीड़ित मरीजों का पता लगाया जा सकता है और लेकिन इसे डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य आकलन से मिला दिया जाए, तो यह और अधिक प्रभावी था। ‘बायोमार्कर जांच’ को शामिल करने से चिकित्सकों गंभीर अवसाद और ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ के बीच भेद करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि सामान्यत: दोनों के लक्षण एक दूसरे से मिलते हैं, लेकिन इनके अलग-अलग इलाज की जरूरत होती है।
जर्नल ‘जेएएमए साइकेट्री’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, यह मौजूदा मनोचिकित्सक जांच में प्रभावी पूरक हो सकता है और अनुसंधानकर्ताओं की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति की जैविक उत्पति को समझने में मदद कर सकता है। ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’से मोटे तौर पर करीब एक प्रतिशत आबादी प्रभावित है। इसका अभिप्राय है कि दुनिया में आठ करोड़ लोग इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त हैं, लेकिन 40 प्रतिशत मरीजों का इलाज गलती से अवसाद स्थिति मानकर किया जाता है। कैम्ब्रिज विविद्यालय के रसायन अभियांत्रिकी और जैव प्रौद्योगिकी विभाग में कार्यरत और अनुसंधान पत्र के प्रथम लेखक जैकब तोमासिक ने बताया, ‘बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त लोग एक पल में दुखी और दूसरे पल में ही खुश या मैनिया का अनुभव करते हैं।’ तोमासिक ने कहा, ‘लेकिन अक्सर मरीज तनावग्रस्त महसूस होने पर डॉक्टरों से संपर्क करते हैं और इसलिए ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ का अकसर गलत इलाज वृहद अवसाद स्थिति के तौर पर किया जाता है।’ ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ का सटीक पता लगाने का सही तरीका पूर्ण मनोस्थिति आकलन है, लेकिन मरीजों को अकसर इस आकलन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है और मनोचिकित्सक भी इसमें समय लेते हैं।
तोमासिक ने कहा, ‘मनोस्थिति आकलन बहुत ही प्रभावी है, लेकिन रक्त जांच से ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ का पता लगाने की क्षमता से यह सुनिश्चित हो सकता है कि मरीज को पहली बार में ही सही इलाज मिले और इससे चिकित्सा पेशेवरों पर से भी कुछ दबाव कम होगा।’ अनुसंधानकर्ताओं ने उन रोगियों में ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ की पहचान करने के लिए 2018 और 2020 के बीच ब्रिटेन में किए गए में डेल्टा अध्ययन के नमूनों और डाटा का उपयोग किया। अध्ययन के दौरान उन मरीजों को शामिल किया गया, जिन्होंने गत पांच वर्षों से अवसाद से मुक्त होने के लिए इलाज कराया था और उनमें अध्ययन के समय भी अवसाद के लक्षण थे। अध्ययन में 3000 प्रतिभागियों को शामिल किया गया और 600 से अधिक सवालों के माध्यम से उनके मानसिक स्वास्थ्य का ऑनलाइन माध्यम से आकलन किया गया। इन प्रतिभागियों में से एक हजार लोगों के रक्त नमूनों को जांच के लिए भेजा गया और अनुसंधानकर्ताओं ने स्पेक्ट्रोमेट्री का इस्तेमाल कर 600 अलग-अलग उपापचय का आकलन किया।


Spread the love