नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आधुनिक प्रक्रियाओं में कृत्रिम मेधा (एआई) के इस्तेमाल से ऐसे जटिल नैतिक, कानूनी और व्यावहारिक विषय खड़े होते हैं जिनकी व्यापक समीक्षा की जरूरत है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कृत्रिम मेधा ‘नवोन्मेष की अगली सीमा’ तक ले जाती है तथा अदालती निर्णय प्रक्रिया में उसका इस्तेमाल अवसर और चुनौतियों दोनों ही पेश करता है जिन पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि कृत्रिम मेधा अप्रत्याशित मौके प्रस्तुत करती है लेकिन साथ ही, वह खासकर नैतिकता, जवाबदेही और पक्षपात से संबंधित कई चुनौतियां भी खड़ी करती है तथा इन चुनौतियों के समाधान के लिए भौगोलिक और संस्थानों की सीमाओं से परे वैिक पक्षों द्वारा ठोस प्रयास की जरूरत है। वह भारत एवं सिंगापुर के उच्चतम न्यायालयों के बीच प्रौद्योगिकी एवं संवाद विषयक दो दिवसीय सम्मेलन में बोल रहे थे। सिंगापुर के प्रधान न्यायाधीश सुंदरीष मेनन तथा कई अन्य न्यायाधीश एवं विशेषज्ञ इस सम्मेलन में मौजूद थे।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि कानूनी क्षेत्र में भी, कानूनी शोध से लेकर मामला विश्लेषण तक और अदालती कार्यवाही की कार्यकुशलता तक, जिस तरह कानूनी पेशेवर काम करते हैं, उनमें बदलाव लाने में कृत्रिम मेधा में विपुल संभावना है। उन्होंने कहा कि कानूनी शोध के क्षेत्र में कृत्रिम मेधा पासा पलटने वाले के रूप में उभरी है तथा उसने कानूनी पेशेवरों को असाधारण कार्यकुशलताएवं सटीकता प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाया है। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि चैटजीपैट के आने से यह चर्चा होने लगी है कि किसी मामले में निष्कर्ष पर पहुंचने में कृत्रिम मेधा पर भरोसा किया जाए या नहीं। उन्होंने कहा, ‘ये घटनाएं दर्शाती हैं कि हम अदालती निर्णय प्रक्रिया में कृत्रिम मेधा के इस्तेमाल के प्रश्न को टाल नहीं सकते। अदालती कार्यवाही समेत आधुनिक प्रक्रियाओं में एआई के इस्तेमाल से ऐसे नैतिक, कानूनी और व्यावहारिक विषय खड़े होते हैं जिन पर व्यापक परीक्षण की जरूरत है।’