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हरी खाद की खेती से खेतों की उर्वरा शक्ति में होगा इजाफा: डॉ. धनंजय तिवारी

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हैदर अली
रोहतास ब्यूरो, (संचार टाइम्स.न्यूज)

गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय, जमुहार के अंतर्गत नारायण कृषि विज्ञान संस्थान के शस्य विज्ञान विभाग में कार्यरत सहायक प्राध्यापक एवं प्रभारी फसल प्रक्षेत्र डॉ. धनंजय तिवारी ने जानकारी दी है कि रबी फसलों की कटाई और खरीफ फसलों की बुआई के बीच का समय हरी खाद के लिए अत्यंत उपयुक्त होता है। ढैंचा, सनई, मूंग और उरद जैसी हरी खाद वाली फसलें मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उसमें जैविक, भौतिक व रासायनिक गुणों का भी सुधार करती हैं।

उन्होंने बताया कि ढैंचा, जो नाइट्रोजन का बेहतरीन स्रोत है, खेतों की जलधारण क्षमता बढ़ाकर खरपतवार नियंत्रण में भी सहायक होता है। इसकी बुआई अप्रैल से जून के बीच छिटकवा विधि से की जा सकती है और बुआई के समय उचित मात्रा में उर्वरक देने से उपज बेहतर होती है। हरी खाद के रूप में ढैंचा की फसल को 45–50 दिनों में खेत में पलटकर मिट्टी में मिलाना चाहिए, जिससे यह प्राकृतिक खाद में बदल जाती है।

डॉ. तिवारी ने यह भी कहा कि रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में हरी खाद का प्रयोग रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता को घटाकर सतत कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।


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