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अस्थमा जागरुकता माह के अवसर पर विशेषज्ञों ने अस्थमा की केयर में सशक्तिकरण के महत्व पर दिया बल

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  • इस साल विश्व अस्थमा दिवस की थीम ‘‘अस्थमा एजुकेशन एम्पॉवर्स’ है, जो अस्थमा के प्रबंधन और मरीजों को बेहतर परिणाम देने में ज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल देती है

लखनऊ : उच्च मृत्यु दर और जीवन की कम गुणवत्ता जैसी गंभीर जन स्वास्थ्य की चुनौतियों के बीच, प्रभावी अस्थमा प्रबंधन का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इस साल विश्व अस्थमा दिवस की थीम ‘‘अस्थमा एजुकेशन एम्पॉवर्स’ है, जो अस्थमा के प्रबंधन और मरीजों को बेहतर परिणाम देने में ज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल देती है। भारत अस्थमा के प्रसार और इसके कारण डिसएबिलिटी-एडजस्टेड लाईफ ईयर्स (डेलीज़) के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर है। साथ ही, अस्थमा के कारण दुनिया में होने वाली 42 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं, इसलिए इस साल की थीम इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता पर बल दे रही है।

अस्थमा के प्रभावी नियंत्रण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ जागरुकता, और एक ऐसे परिवेश का सहयोग आवश्यक है, जिसमें देखभाल के विभिन्न पहलू शामिल हों। अस्थमा के सफर में बीमारी से लेकर इसकी थेरेपी, जागरुकता, निदान, जाँच और काउंसलिंग तथा इलाज का पालन करने तक हर चरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। सिप्ला के बेरोक जिंदगी और टफीज़ जैसे जन जागरुकता अभियानों और मरीज के सहयोग के प्रयासों जैसे कंपनी के ब्रीदफ्री अभियान के बीच तालमेल से मरीजों के लिए सहयोग का एक नेटवर्क स्थापित होता है। ब्रीदफ्री में फिज़िकल और डिजिटल तत्व शामिल हैं, जिनमें एक एआई-इनेबल्ड डिवाईस ट्रेनिंग प्लेटफॉर्म भी है। इस नेटवर्क से न केवल मरीजों को सहायता मिलती है, बल्कि उनके परिवारों को भी राहत मिलती है।

शिक्षा द्वारा सशक्त कार्रवाई के महत्व के बारे में डॉ. बी.पी. सिंह, श्वसन, क्रिटिकल केयर एवं विशेषज्ञ नींद चिकित्सा, लखनऊ ने कहा, ‘‘अस्थमा एक लंबी चलने वाली/क्रोनिक बीमारी है, जो साँस की नली संकरी हो जाने, ट्रिगर्स (डस्ट माईट्स, धुएँ, ठंडी हवा आदि) के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाने और हवा के मार्ग में परिवर्तन होने के कारण उत्पन्न होती है। यह एक लाइलाज बीमारी है, लेकिन समय पर इसके निदान और मेडिकल हस्तक्षेप द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है। हालाँकि कई गलत भ्रांतियों, खासकर इन्हेलेशन थेरेपी को लेकर फैली अफवाहों के कारण मरीज डॉक्टर की मदद लेने से कतराते हैं। हालात ये हैं कि भारत में केवल 23 प्रतिशत मरीज ही अपनी बीमारी को सही नाम से पुकारते हैं, जबकि अन्य लोग इसे खाँसी और जुकाम आदि नामों से पुकारते हैं। इसलिए हम जागरुकता बढ़ाकर न केवल मरीजों को बल्कि पूरे समुदाय को समय पर निदान और इसके प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, ताकि अस्थमा के मरीजों को स्वास्थ्य के बेहतर परिणाम मिल सकें।’’

शिक्षा और इलाज का पालन करने के महत्व के बारे में डॉ. ए.के. सिंह, लखनऊ के एक अस्पताल में पल्मोनरी मेडिसिन के निदेशक और एचओडी ने कहा, ‘‘अस्थमा प्रबंधन का उद्देश्य इसके लक्षणों को नियंत्रित करना है, ताकि अस्थमा का दौरा न पड़े और जीवन की गुणवत्ता बढ़ सके। इसके लिए मेंटेनेंस और रिलीवर थेरेपी की मदद ली जाती है। इन्हेलेशन थेरेपी इसमें काफी कारगर है, जो जीवन की गुणवत्ता काफी बढ़ा देती है। कुछ मरिज़, जैसे बच्चे और वृद्ध, जो तेजी से इन्हेल नहीं कर पाते हैं, उनके लिए नेबुलाईज़्ड ट्रीटमेंट व्यवहारिक समाधान पेश करता है, जो खासकर उस समय काफी उपयोगी है, जब अस्थमा बिगड़ता है। हालाँकि यह चिंताजनक है कि डायग्नोज़ किए गए 9 प्रतिशत से भी कम मरीज इन्हेलेशन थेरेपी लेते हैं, जिसका कारण यह गलत भ्रांति है कि इलाज का पालन न हो पाने में इन्हेलर्स की मुख्य भूमिका है। ये चुनौतियाँ हैल्थकेयर की सीमित उपलब्धता, अपर्याप्त डिवाईस ट्रेनिंग और मार्गदर्शन की कमी जैसी समस्याओं के कारण और ज्यादा गंभीर हो जाती हैं। इसलिए इन समस्याओं को हल करने के लिए भारत में अस्थमा केयर के दृष्टिकोण में मूलभूत परिवर्तन किए जाने की जरूरत है।’’

जागरुकता को प्राथमिकता देकर और एक सहयोगपूर्ण परिवेश की स्थापना करके, सिप्ला यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि मरीजों को अस्थमा के पूरे इलाज के दौरान आवश्यक सहयोग मिल सके। बेरोक जिंदगी के साथ सिप्ला ने विभिन्न रचनात्मक माध्यमों द्वारा अस्थमा से जुड़ी भ्रांतियों और इसके इलाज से जुड़ी गलत धारणाओं को चुनौती दी है। वहीं टफीज़ अभियान अस्थमा जैसी साँस की बीमारियों से पीड़ित बच्चों और उनके केयरगिवर्स के लिए दिलचस्प कॉमिक बुक्स और टफीज़ की स्कूल यात्रा जैसे ऑन-ग्राउंड स्कूल कार्यक्रमों की मदद से एक प्रेरणाप्रद आंदोलन बन गया है।

साथ ही, सिप्ला का ब्रीदफ्री अभियान अस्थमा के मरीजों को जाँच, काउंसलिंग और इलाज के अनुपालन के क्षेत्रों में विस्तृत सपोर्ट के संसाधन उपलब्ध करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है। ऑनग्राउंड जाँच शिविरों से लेकर एआई इनेबल्ड ब्रीदफ्री डिजिटल एजुकेटर प्लेटफॉर्म और डिवाईस ट्रेनिंग ‘हाउ-टू’ वीडियोज़ तक, ब्रीदफ्री अस्थमा पीड़ितों के लिए एक वन-स्टॉप सपोर्ट सॉल्यूशन बन गया है।


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