
कोविड-19 वैिक महामारी की शुरुआत में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए कोरोना वायरस संबंधी अध्ययन पत्रिकाओं में बड़ी संख्या में प्रकाशित हुए। कई प्रकाशन संस्थाओं ने कोविड-19 संबंधी अनुसंधान पत्रों की स्वीकृति दर को अपेक्षाकृत अधिक रखा। उस समय धारणा यह थी कि नीति निर्माता और आमजन बड़ी मात्रा में तेजी से प्रसारित जानकारी के बीच से वैध और उपयोगी शोध की पहचान करने में सक्षम होंगे। ‘गूगल स्कॉलर’ में सूचीबद्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी शीर्ष 15 पत्रिकाओं में 2020 में प्रकाशित 74 कोविड-19 पत्रों की समीक्षा करने पर पाया गया कि इनमें से कई अध्ययनों के दौरान निम्न गुणवत्ता वाले तरीकों का इस्तेमाल किया गया था। चिकित्सा जगत संबंधी पत्रिकाओं में प्रकाशित अध्ययनों की कई अन्य समीक्षाओं से भी यह पता चला है कि कोविड-19 के शुरुआती दौर में इस महामारी संबंधी अनुसंधान के लिए निम्न स्तर की पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया था। इनमें से कुछ कोविड-19 अनुसंधान पत्रों का कई बार हवाला दिया गया। उदाहरण के लिए, ‘गूगल स्कॉलर’ पर सूचीबद्ध सबसे अधिक उद्धृत सार्वनजिक स्वास्थ्य प्रकाशन संस्था ने 1,120 लोगों के नमूने के आंकड़ों का उपयोग किया। इन लोगों में मुख्य रूप से शिक्षित युवा महिलाएं शामिल थीं, जिन्हें तीन दिनों में सोशल मीडिया के जरिए अनुसंधान में शामिल किया गया था।

अपनी सुविधा से चुने गए एक छोटे नमूने पर आधारित निष्कर्ष बड़े पैमाने पर आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। इसके बावजूद इस अध्ययन को 11,000 से अधिक बार उद्धृत किया गया। टीके जैसे सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के बारे में गलत सूचना फैलाने वाले विज्ञान विरोधी आंदोलन के विपरीत, मेरा मानना है कि तर्कसंगत आलोचना विज्ञान के लिए अहम है। शोध की गुणवत्ता और सत्यनिष्ठा काफी हद तक उसकी पद्धति पर निर्भर करती है। वैध और उपयोगी जानकारी प्रदान करने के लिए अध्ययन के हर डिज़ाइन में कुछ विशेषताएं होनी आवश्यक हैं। समान पत्रिकाओं में प्रकाशित गैर-कोविड-19 पत्रों और कोविड-19 पत्रों की तुलना करने वाले अध्ययनों में पाया गया कि कोविड-19 पत्रों में कम गुणवत्ता वाली पद्धतियां अपनाई गईं । एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि कोविड-19 संबंधी 686 पत्रों को जमा करने से लेकर उनकी स्वीकृति तक का औसत समय 13 दिन रहा, जबकि सामान्य पत्रिकाओं में प्रकाशित महामारी के पूर्व के 539 पत्रों में यह अवधि 110 दिन थी। अध्ययन में पाया गया कि जिन दो ऑनलाइन पत्रिकाओं ने पद्धति के आधार पर कमजोर कोविड-19 पत्रों को बड़ी संख्या में प्रकाशित किया, विशेषेज्ञों से उनका विश्लेषण कराए जाने की अवधि मात्र तीन सप्ताह थी।
