नई दिल्ली। भारत को जी-20 की अध्यक्षता की कमान मिलने से तीसरी दुनिया के देशों में एक नए आत्मविास का उदय हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीटीआई/भाषा को दिए एक विशेष साक्षात्कार में यह बात कही। साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने जी-20 के साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत में भ्रष्टाचार जातिवाद और संप्रदायवाद पर भी बात की। उन्होंने कहा कि लंबे समय से भारत को एक अरब भूखे पेट वाले देश के रूप में देखा जाता था पर यह अब दो अरब कुशल हाथों वाला देश बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र रिफार्म पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 20वीं सदी के मध्य का दृष्टिकोण 21वीं सदी में दुनिया की सेवा नहीं कर सकता। उन्होंने कश्मीर और अरुणाचल में जी-20 की बैठक पर पाकिस्तान और चीन की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि देश के हर हिस्से में बैठकें आयोजित करना स्वाभाविक है। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के संपादित अंश :-
प्रश्न : जी-20 की अध्यक्षता ने भारत को एक स्थाई, समावेशी और न्यायसंगत दुनिया के लिए अपने दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और ¨हद-प्रशांत क्षेत्र में एक नेता के रूप में अपना प्रोफाइल बढ़ाने का अवसर दिया है। शिखर सम्मेलन में अब कुछ ही दिन बचे हैं, कृपया भारत की अध्यक्षता की उपलब्धियों के बारे में अपने विचार साझा करें?
उत्तर : इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हमें दो पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला जी-20 के गठन पर है। दूसरा वह संदर्भ है जिसमें भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिली। जी-20 की उत्पत्ति पिछली शताब्दी के अंत में हुई थी। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक संकटों के लिए एक सामूहिक और समन्वित प्रतिक्रिया की दृष्टि को लेकर एक साथ मिलीं। 21 वीं सदी के पहले दशक में वैिक आर्थिक संकट के दौरान इसका महत्व और भी बढ़ गया। लेकिन जब महामारी ने दस्तक दी, तो दुनिया ने समझा कि आर्थिक चुनौतियों के अलावा, मानवता को प्रभावित करने वाली अन्य महत्वपूर्ण और तात्कालिक चुनौतियां भी हैं। इस समय तक, दुनिया पहले से ही भारत के मानव-केंद्रित विकास मॉडल पर ध्यान दे रही थी। चाहे वह आर्थिक विकास हो, तकनीकी प्रगति हो, संस्थागत वितरण हो या सामाजिक बुनियादी ढांचा हो, इन सभी को अंतिम छोर तक ले जाया जा रहा था ताकि यह सुनिश्चित हो कि कोई भी पीछे न छूटे। भारत द्वारा उठाए जा रहे इन बड़े कदमों के बारे में अधिक जागरूकता थी। यह स्वीकार किया गया कि जिस देश को सिर्फ एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाता था, वह वैिक चुनौतियों के समाधान का एक हिस्सा बन गया है।
भारत के अनुभव को देखते हुए, यह माना गया कि संकट के दौरान भी मानव-केंद्रित दृष्टिकोण काम करता है। एक स्पष्ट और समन्वित दृष्टिकोण के माध्यम से महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया, प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सबसे कमजोर लोगों को प्रत्यक्ष सहायता, टीकों का विकास और दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चलाना और लगभग 150 देशों के साथ दवाओं और टीकों को साझा करना। इन सभी को दुनिया ने महसूस किया और अच्छी तरह से इसकी सराहना भी की गई। यह समझ बढ़ रही है कि दुनिया को जिन समाधानों की आवश्यकता है, उनमें से कई पहले से ही हमारे देश में गति और पैमाने के साथ सफलतापूर्वक लागू किए जा रहे हैं। भारत की जी-20 अध्यक्षता से कई सकारात्मक प्रभाव सामने आ रहे हैं। उनमें से कुछ मेरे दिल के बहुत करीब हैं।
भारत की जी-20 अध्यक्षता ने तथाकथित ‘तीसरी दुनिया’ के देशों में भी विास के बीज बोए हैं। वे जलवायु परिवर्तन और वैिक संस्थागत सुधारों जैसे कई मुद्दों पर आने वाले वर्षों में दुनिया की दिशा को आकार देने के लिए अधिक आत्मविास हासिल कर रहे हैं। हम एक अधिक प्रतिनिधित्व और समावेशी व्यवस्था की ओर तेजी से बढ़ेंगे जहां हर आवाज सुनी जाएगी।
(साक्षात्कार का शेष भाग पेज-10)