जलवायु से जुड़े अपने वादों को पूरा करने की राह पर आगे बढ़ने वाले दुनिया के कुछ देशों में भारत के भी होने को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की मेजबानी करने का शुक्रवार को प्रस्ताव किया। साथ ही, ‘ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव’ की शुरुआत की, जो लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ तैयार करने के प्रति लक्षित है।
प्रधानमंत्री मोदी ने यहां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी28) के दूसरे दिन कई उच्च स्तरीय कार्यक्रमों में भाग लेते हुए कहा कि विकसित देशों को 2050 से पहले अपने कार्बन उत्सर्जन में पूरी तरह से कमी लानी चाहिए और सभी विकासशील देशों को वैश्विक कार्बन बजट में उनका उचित हिस्सा देना चाहिए। उन्होंने विभिन्न देशों से सीओपी28 में विकासशील और गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए वित्तपोषण पर ठोस कदम उठाने का भी आग्रह किया।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी28) के दौरान राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों के प्रमुखों के उच्च स्तरीय सत्र को संबोधित करते हुए मोदी ने पृथ्वी अनुकूल सक्रिय और सकारात्मक पहल का आह्वान करते हुए कहा कि ‘ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव’ कार्बन क्रेडिट से जुड़ी व्यावसायिक मानसिकता से परे है। उन्होंने कहा, ‘‘यह लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ तैयार करने पर केंद्रित है और मैं आप सभी को इस पहल में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया के पास पिछली सदी की गलतियों को सुधारने के लिए ज्यादा समय नहीं है।
यह पहल अक्टूबर में देश में अधिसूचित ‘ग्रीन क्रेडिट’ कार्यक्रम के समान है। यह बाजार-आधारित तंत्र है जिसे व्यक्तियों, समुदायों और निजी क्षेत्र द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को पुरस्कृत करने के लिए तैयार किया गया है। इस पहल में, बंजर भूमि की एक सूची बनाना शामिल है, जिसका उपयोग व्यक्तियों और संगठनों द्वारा पौधरोपण के लिए किया जा सकता है। पर्यावरणीय रूप से सकारात्मक कार्य करने वाले प्रतिभागियों को व्यापार योग्य हरित क्रेडिट प्राप्त होंगे। पंजीकरण से लेकर वृक्षारोपण, सत्यापन और ग्रीन क्रेडिट जारी करने तक की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने पौधरोपण और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विचारों, ज्ञान और अनुभवों को एकत्र करने के लिए एक वैश्विक पोर्टल शुरू करने की भी घोषणा की। इस मंच का उद्देश्य वैश्विक नीतियों, पंरपराओं और ग्रीन क्रेडिट की मांग को प्रभावित करना है। यदि भारत के सीओपी33 की मेजबानी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह इस साल की शुरुआत में हुए जी20 शिखर सम्मेलन के बाद देश में अगला बड़ा वैश्विक सम्मेलन होगा। भारत ने 2002 में नयी दिल्ली में सीओपी8 की मेजबानी की, जहां देशों ने दिल्ली मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र को अपनाया, जिसमें विकसित देशों द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के प्रयासों का आह्वान किया गया।
मोदी ने स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन के साथ, लीडआईटी 2.0 की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों में उद्योगों में बदलाव के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के साथ ही कम कार्बन उत्सर्जन प्रौद्योगिकी का सह-विकास और हस्तांतरण करना है। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां सीओपी28 में ‘ट्रांसफॉर्मिंग क्लाइमेट फाइनेंस’ पर एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ (एनसीक्यूजी) पर ठोस और वास्तविक प्रगति की उम्मीद करता है, जो 2025 के बाद का एक नया वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य है। उन्होंने कहा, ‘‘विकसित देशों को 2050 से पहले ही कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को पूरी तरह कम करना चाहिए।’’ विकसित देशों ने 2009 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के वास्ते विकासशील देशों की सहायता के लिए 2020 तक प्रतिवर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का वादा किया था।
वर्ष 2025 तक इस उद्देश्य के लिए समयसीमा के विस्तार के बावजूद, इन देशों ने इस प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया है। सीओपी28 का लक्ष्य 100 अरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को पूरा करते हुए 2025 के बाद के नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य के लिए आधार तैयार करना है। इन देशों का लक्ष्य 2024 में सीओपी29 तक इस नए लक्ष्य को अंतिम रूप देना है। मोदी ने कहा कि हरित जलवायु कोष और अनुकूलन कोष (एडॉप्टेशन फंड) में पैसे की कमी नहीं होनी चाहिए और इनकी तुरंत पूर्ति की जाए। उन्होंने कहा कि बहुपक्षीय विकास बैंकों को न केवल विकास के लिए बल्कि जलवायु कार्रवाई के लिए भी किफायती वित्त उपलब्ध कराना चाहिए।
उद्घाटन सत्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टिल के साथ मंच पर सीओपी28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर के साथ शामिल होने वाले मोदी एकमात्र नेता थे। उन्होंने कहा, ‘‘पिछली सदी में मानवता के एक छोटे वर्ग ने प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया। हालांकि, पूरी मानवता को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है, खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ में रहने वाले लोगों को।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और ‘ग्लोबल साउथ’ के अन्य देशों ने जलवायु संकट में बहुत कम योगदान दिया है, लेकिन ये सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘संसाधनों की कमी के बावजूद, ये देश जलवायु कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी ‘ग्लोबल साउथ’ की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।’’ उन्होंने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ के देश जलवायु संकट से निपटने के लिए विकसित देशों से हर संभव मदद की उम्मीद करते हैं। विकसित देशों की 2030 की राष्ट्रीय जलवायु योजना औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए सामूहिक रूप से उनके 2019 के स्तर से उत्सर्जन में 36 प्रतिशत की कमी दिखाती है।
‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर विकासशील और अल्प विकसित देशों के लिए किया जाता है, जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘केवल अपने हितों के बारे में सोचना दुनिया को केवल अंधकार में ले जाएगा।’’ मोदी का बयान इस संदर्भ में आया है कि गरीब और विकासशील देशों को अमीर देशों द्वारा ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के कारण बढ़ते तापमान से बदलती जलवायु के परिणामस्वरूप बाढ़, सूखा, गर्मी, शीत लहर जैसी जलवायु संबंधी चरम घटनाओं का खामियाजा भुगतना पड़ता है।
प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और अनुकूलन के बीच संतुलन बनाए रखने का आह्वान किया और कहा कि दुनिया भर में ऊर्जा रूपांतरण ‘‘न्यायसंगत और समावेशी’’ होना चाहिए। उन्होंने विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए अमीर देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ‘पर्यावरण के लिए जीवन शैली (लाइफ अभियान)’ की पैरोकारी कर रहे हैं, देशों से धरती-अनुकूल जीवन पद्धतियों को अपनाने और गहन उपभोक्तावादी व्यवहार से दूर जाने का आग्रह कर रहे हैं।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि यह दृष्टिकोण (लाइफ अभियान) कार्बन उत्सर्जन को दो अरब टन तक कम कर सकता है। उन्होंने देशों से मिलकर काम करने और जलवायु संकट के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने का आह्वान किया। मोदी ने कहा, ‘‘हम एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे और एक-दूसरे का समर्थन करेंगे। हमें सभी विकासशील देशों को वैश्विक कार्बन बजट में अपना उचित हिस्सा देने की जरूरत है।