crossorigin="anonymous"> किसी को भी हो सकती है करुणा की थकान - Sanchar Times

किसी को भी हो सकती है करुणा की थकान

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जब दुखद घटनाएं घटती हैं, चाहे वे हमसे कितनी भी दूर क्यों न हों, उन पर ध्यान न दे पाना मुश्किल होता है। हममें से कई लोग इन स्थितियों में फंसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और सोचते हैं कि हम कैसे इसमें शामिल हो सकते हैं, या क्या हम ऐसे लोगों की मदद के लिए कुछ कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, हमने महत्वपूर्ण वैिक घटनाओं की एक श्रृंखला देखी है, जिनमें कोविड महामारी से लेकर यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के साथ-साथ कई प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं। जब ऐसा लगा कि हालात और खराब नहीं हो सकते, हमास इस्रइल संघर्ष शुरू हो गया। इतनी सारी त्रासदियों के एक के बाद एक आने के बाद, हममें से कुछ लोग यह महसूस कर रहे होंगे कि दुनियाभर में एक साथ इतना कुछ हो रहा है, हमारे पास देने के लिए कोई सहानुभूति नहीं बची है और हम अपने आस-पास जो चल रहा है उससे दूर हो जाएंगे। यदि आप ऐसा महसूस कर रहे हैं, तो जान लें कि इसका मतलब यह नहीं है कि आपमें दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी है। बल्कि, यह एक संकेत हो सकता है कि आप सहानुभूति व्यक्त कर कर के थक चुके हैं। करुणा थकान एक तनाव प्रतिक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप किसी आपदा के पीड़ित लोगों के प्रति उदासीनता या अलगाव की भावना उत्पन्न होती है। यह घटना स्वास्थ्य देखभाल में विशेष रूप से आम है।
मनोवैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तित्व वाले लोगों में करुणा थकान का अनुभव होने का खतरा अधिक हो सकता है। उदाहरण के लिए, जो लोग अपनी भावनाओं को दबाए रखते हैं, लेकिन निराशावाद और चिंता से ग्रस्त होते हैं, वे अधिक संवेदनशील होते हैं। सामाजिक समस्याओं के प्रति सार्वजनिक चिंता की सामान्य असंवेदनशीलता का वर्णन करने के लिए भी इस शब्द का उपयोग तेजी से किया जा रहा है। लेकिन, जैसा कि पत्रकारिता प्रोफेसर सुसान मोएलर ने अपनी पुस्तक कंपैशन फटीग में लिखा है, क्या हम ‘अपने आस-पास की दुनिया के बारे में कम परवाह करते हैं’ – तब भी जब हम जो समाचार कहानियां और छवियां देखते हैं वे इतनी भयावह और चौंकाने वाली होती हैं? विज्ञान हमें एक स्पष्टीकरण प्रदान करता है, और वह यह है कि करुणा की अधिकता से अवसाद, थकन और भावनाओं का आधिक्य महसूस हो सकता है। करुणा की थकान दूसरों की पीड़ा से उबरने के लिए ‘‘अस्तित्व की रणनीति’’ के रूप में कार्य करती है। मीडिया भी इसमें आंशिक रूप से भूमिका निभा सकता है। कई प्रकाशन इस बात से अवगत हैं कि जब संकटों का दौर आता है, तो हमारी चिंता का स्तर कम हो जाता है। इसलिए, लोगों को जोड़े रखने के लिए ऐसी सामग्री का प्रकाशन किया जाता है जो तेजी से ध्यान आकषिर्त करे। मोलर के अनुसार, पत्रकार उन घटनाओं को त्याग कर ऐसा करते हैं जिनमें पिछली घटनाओं की तुलना में नाटकीयता या घातकता की कमी होती है, या अपनी कहानियों में अधिक साहसी भाषा और कल्पना का उपयोग करते हैं। ऐसी कई तकनीकें हैं जिनका उपयोग आप इसका सामना करने और इस पर काबू पाने के लिए कर सकते हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

स्वीकृति : समाचारों से विमुख महसूस करने के लिए दोषी महसूस न करें। दर्दनाक समाचारों को सुनकर, या परेशान करने वाली छवियों को देखकर व्यथित होना सामान्य बात है। इस मुकाबला करने की तकनीक को परिहार कहा जाता है और यह बताती है कि क्यों हममें से बहुत से लोग परेशान करने वाली चीजों से दूर जाना चाहते हैं। यह जानना और स्वीकार करना कि परिस्थितियों को देखते हुए यह एक सामान्य प्रतिक्रिया है, करुणा की थकान पर काबू पाने का प्रारंभिक कदम है।
सीमाएँ निर्धारित करें
सूचनाओं को निष्क्रिय करके और यह नियंत्रित करके कि आप कब और कितनी बार इसके साथ जुड़ते हैं, समाचार देखना पढ़ना नियंत्रित करें। इससे न केवल करुणा की थकान की भावना में सुधार हो सकता है, बल्कि इसके अन्य लाभ भी हो सकते हैं। प्रकृति से जुड़ें प्रकृति में टहलने से तनाव के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है। यह करुणा थकान को कम करने में भी मदद कर सकता है, क्योंकि ऊंचा कोर्टिसोल स्तर (‘तनाव हार्मोन’ के रूप में जाना जाता है) क्रोनिक तनाव, उकताहट और भावनात्मक तनाव से जुड़ा हुआ है – ये सभी करुणा थकान को बढ़ा सकते हैं।

देखभाल करें : पौधों या पालतू जानवरों की देखभाल से सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जीवित चीजों का पोषण व्यक्तिगत संतुष्टि को बढ़ावा देता है, और साथी जानवर नकारात्मक भावनाओं को कम कर सकते हैं, करुणा थकान के कुछ प्रभावों को कम कर सकते हैं।

समाधान का प्रयास करें : दुर्गम मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय उन समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करें जिन्हें आप हल कर सकते हैं। स्वयंसेवा ऐसा करने का एक तरीका हो सकता है। यह बेहतर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा है।दान देने से खुशी और कल्याण भी बढ़ सकता है, जो करुणा थकान के प्रभाव को कम कर सकता है। ये ठोस उपाय करुणा थकान से जुड़ी असहायता को कम कर सकते हैं।


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