
कांग्रेस ने यह मान लिया था कि इस बार जीत उसकी होगी, और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आवास के बाहर जश्न की तैयारियां इसी आत्मविश्वास का प्रतीक थीं
ST.News Desk : हरियाणा चुनाव के लिए वोटों की गिनती शुरू होने के एक घंटे बाद, कांग्रेस ने बीजेपी से आगे निकलकर उत्सव मनाना शुरू किया। लेकिन लगभग एक घंटे बाद स्थिति बदल गई, और बीजेपी ने अचानक बढ़त बना ली, जिससे अब वह सरकार बनाने की स्थिति में है। इस उलटफेर ने कांग्रेस की उम्मीदों को चूर-चूर कर दिया है।

कांग्रेस की इस हार के पीछे कई कारण हैं। पहले, पार्टी के भीतर ओवर कॉन्फिडेंस ने उसे नुकसान पहुंचाया। कांग्रेस ने यह मान लिया था कि इस बार जीत उसकी होगी, और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आवास के बाहर जश्न की तैयारियां इसी आत्मविश्वास का प्रतीक थीं।
दूसरे, जाट वोटरों पर अत्यधिक भरोसा करना भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ा। हरियाणा में जाटों का वोट बैंक महत्वपूर्ण माना जाता है, और कांग्रेस ने इस बार सबसे ज्यादा जाट उम्मीदवार उतारे थे। फिर भी, बीजेपी ने जाट लैंड में भी बढ़त बनाई, जिससे साफ होता है कि अन्य समुदायों ने सत्ताधारी दल का समर्थन किया।
किसानों और पहलवानों पर कांग्रेस की निर्भरता भी समस्या बनी। हालांकि किसान मुद्दे मीडिया में प्रमुखता से उठे, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका प्रभाव सीमित रहा। कुछ पहलवान भी बीजेपी के पक्ष में खड़े हुए, जिससे कांग्रेस की स्थिति और कमजोर हुई।
इसके अलावा, पार्टी की अंदरूनी कलह भी एक बड़ा कारण है। शीर्ष नेता सत्ता के लिए आपस में झगड़ते रहे हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच का संघर्ष खुलकर सामने आया है, जिसने पार्टी की एकता को कमजोर किया।
भाजपा के पक्ष में गैर-जाट वोटों का एकीकरण हुआ, जबकि जाट समुदाय की एकजुटता टूट गई। ओबासी, दलित, और ब्राह्मणों का एकजुट होना भी बीजेपी की जीत में योगदान दे रहा है। कांग्रेस ने नायाब सिंह सैनी को कमजोर आंकने की गलती की, जो अब उसके लिए भारी पड़ गया है।
फिलहाल, चुनाव परिणामों ने कांग्रेस के लिए एक बड़ा सबक छोड़ा है, और पार्टी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
