crossorigin="anonymous"> ’बुलडोजर न्याय‘ पर लगा ब्रेक - Sanchar Times

’बुलडोजर न्याय‘ पर लगा ब्रेक

Spread the love

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कानूनी प्रक्रिया के बिना बुलडोजर चलाना अराजकता की निशानी

ST.News Desk : सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना बुलडोजर से मकान ढहाने की सरकार की कार्रवाई को अराजकता की निशानी कहा। सुप्रीम कोर्ट ने अनधिकृत निर्माण को गिराने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए और बहुत सख्त लहजे में कहा कि यदि देश की सर्वोच्च अदालत की गाइडलाइंस का पालन नहीं किया गया तो अचल संपत्ति ढहाने के जिम्मेदार सरकारी अफसर पर मुकदमा चलाया जाएगा। उसे अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ेगा और सरकारी खजाने से नहीं बल्कि उसे अपनी जेब से उस इमारत का निर्माण करना होगा जो अवैध रूप से ढहाई गई है।


जस्टिस बीआर गवई और केवी विनाथन की बेंच ने बुलडोजर के लगातर बढ़ते चलन पर गहरे बुनियादी सवाल उठाए। बेंच ने कहा कि किसी आपराधिक वारदात में शामिल होने की आशंका या एफआईआर में नाम आते ही आरोपी के मकान-दुकान को ढहाना कानून के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि सरकार या सरकारी अधिकारी को कब से यह अधिकार मिल गया कि वह आपराधिक मुकदमे के अभियुक्त को दोषी ठहराए। संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकार निर्धारित हैं। न्यायपालिका भी निष्पक्ष ट्रायल के बाद आपराधिक वारदातों में कथित रूप से शामिल व्यक्ति को दोषी ठहराती है। उसकी सजा की अवधि उसके द्वारा किए गए जुर्म के अनुपात में ही निर्धारित की जाती है। मौत की सजा पाए शख्स को तब तक फांसी के तख्ते पर नहीं लटकाया जाता, जब तक हाई कोर्ट मृत्युदंड की पुष्टि न करे दे। भारतीय न्याय शास्त्र में अभियुक्त या आरोपी की अचल सम्पत्ति को ढहाने का प्रावधान नहीं है। अनधिकृत निर्माण गिराने के लिए हर राज्य के स्थानीय कानून हैं। इन नगर निकाय नियमों या गांव-देहात में पंचायत के नियमों के आधार पर ही अवैध निर्माण को ढहाया जा सकता है। अदालत द्वारा अपराधी ठहराए गए शख्स की अचल सम्पत्ति पर हाथ नहीं डाला जा सकता तो फिर आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाने का अधिकार सरकार को किसने दिया?


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आश्रय का अधिकार (राइट टू शेल्टर) संविधान में नागरिकों को दिया गया बुनियादी अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार को बुलडोजर से रौंदा नहीं जा सकता। परिवार के एक सदस्य के अपराध में शामिल होने का मतलब यह नहीं कि उसके सभी सदस्यों को मकान गिराकर सजा दी जाए। सामूहिक सजा का प्रावधान भारतीय न्याय शास्त्र की मूल अवधारणा के ठीक विपरीत है।


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *