नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा कि संविधान के तहत सरकारों को आम भलाई के लिए निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार नहीं है। सीजेआई धनंजय चन्द्रचूड की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 7:2 के बहुमत से कहा कि सरकारें कुछ मामलों में निजी संपत्तियों पर दावा कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में संजीव कोक मामले में दिए गए अपने फैसले को पलट दिया।
चीफ जस्टिस द्वारा सुनाए गए बहुमत के फैसले में जस्टिस कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया गया जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत वितरण के लिए सरकारों द्वारा अधिगृहीत किया जा सकता है। सीजेआई चंद्रचूड ने अपने और संविधान पीठ के छह अन्य न्यायाधीशों के लिए फैसला लिखा, जिसने इस जटिल कानूनी सवाल पर निर्णय किया कि क्या निजी संपत्तियों को अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन माना जा सकता है और आम भलाई के वास्ते वितरण के लिए सरकार के अधिकारियों द्वारा अपने कब्जे में लिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने उन कई फैसलों को पलट दिया, जिनमें समाजवादी सोच को अपनाया था और कहा गया था कि सरकारें आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकती हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सीजेआई द्वारा लिखे गए बहुमत के फैसले से आंशिक रूप से असहमति जताई, जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति जताई।
अनुच्छेद 31सी, अनुच्छेद 39(बी) और (सी) के तहत बनाए गए कानून की रक्षा करता है जो सरकार को आम भलाई के वास्ते वितरण के लिए निजी संपत्तियों सहित समुदाय के भौतिक संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देता है। शीर्ष अदालत ने 16 याचिकाओं पर सुनवाई की जिनमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी। पीओए ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय 8-ए का विरोध किया है। 1986 में जोड़ा गया यह अध्याय सरकारी प्राधिकारियों को भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है जिस पर वे बने हैं, यदि वहां रहने वाले 70 प्रतिशत लोग पुनस्र्थापन उद्देश्यों के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।